एक चर्चित मगर विवादित लेखक सलमान रुश्दी का गुनाह बहुत संगीन है कि एक तो वे नास्तिक और दूसरे, मुसलमानों के पैगंबर हजरत मोहम्मद की शान में गुस्ताखी करते रहते हैं. लेकिन यह सब हवाहवाई नहीं है बल्कि इस के पीछे उन के अपने तर्क हैं. कट्टर से कट्टरवादी भी सलमान के तर्कों से असहमत नहीं हो सकता बशर्ते वह उन के उपन्यास 'द सैटेनिक वर्सेस' यानी शैतानी आयतों को बिना किसी पूर्वाग्रह के दिलोदिमाग की खिड़कियां खोल कर पढ़ ले. इस उपन्यास का सार और एक बहुत बड़ा सच उसी में लिखे एक वाक्य से स्पष्ट हो जाता है कि शुरुआत से ही आदमी ने गलत को सही ठहराने के लिए ईश्वर का इस्तेमाल किया.
खुद को सही और इसलाम व पैगंबर से असहमति जताने के जुर्म की सजा देने की कोशिश में अमेरिका के पश्चिमी न्यूयॉर्क के चौटाउक्का इंस्टिट्यूशन में 2 अगस्त को एक नौजवान ने सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमला कर दिया. हमला इतना खतरनाक और नफरत व प्रतिशोध से भरा हुआ था कि महज 20 सैकंड में उन के गले और पेट पर दर्जन से भी ज्यादा प्रहार किए गए. हमलावर का नाम है हादी मतार जो न्यूजर्सी में रहता है. सलमान को पुलिस सुरक्षा में तुरंत हवाई जहाज से अस्पताल ले जाया गया और उन की जान बच गई.
न्यूयॉर्क पुलिस की निगाह में हादी मतार के हमले की वजह भले ही स्पष्ट नहीं हो लेकिन किसी को यह बताने की जरूरत नहीं पड़ी कि यह उस फतवे का दीर्घकालिक असर है जो अब से 33 साल पहले 1989 में ईरान के सर्वोच्च धर्मगुरु, जाहिर है कट्टर, अयातुल्लाह खुमैनी ने जारी किया था कि सलमान रुश्दी को मारने वाले को 30 लाख डौलर का इनाम दिया जाएगा क्योंकि उन्होंने अपने उपन्यास 'द सैटेनिक वर्सेस' में पैगंबर मोहम्मद के प्रति बेअदबी की है. यह सोचना बेमानी है कि हादी मतार ने सिर्फ इस रकम के लालच में हमला किया बल्कि उस की मंशा इसलाम के उसूलों की हिफाजत करना ज्यादा थी.
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