यह बात 21 नवंबर, 1963 की है जब केरल के तुंबा से अमेरिका में बना रॉकेट, नाइक अपाचे के प्रक्षेपण के साथ भारत की अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत हुई थी। भारत के दिग्गज भौतिक विज्ञानी और अंतरिक्ष अनुसंधान के अगुआ रहे विक्रम साराभाई ने एक टेलीग्राम भेजा जिसमें लिखा था, 'जी विज वंडरफुल रॉकेट शॉट।' चार साल के भीतर 20 नवंबर, 1967 को देश ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा तैयार किए गए पहले रॉकेट रोहिणी75 को प्रक्षेपित किया। इसरो ने 1960 के दशक में जिस तरह के कदम उठाए थे ठीक उसी तरह के कदम देश के निजी क्षेत्र ने तब दोहराए जब हैदराबाद स्थित स्काईरूट एरोस्पेस ने लगभग छह दशकों के बाद पिछले हफ्ते विक्रम-एस (साराभाई की याद में रखे गए नाम) का प्रक्षेपण किया।
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के वैज्ञानिक सलाहकार और इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के पूर्व निदेशक एम सी दातन ने यह जानकारी देते हुए कहा, 'इस रॉकेट का महत्त्व यह है कि इस क्षेत्र को खोले जाने के बाद पहली बार निजी क्षेत्र इस तरह की उपलब्धि हासिल कर रहा है।' साउंडिंग रॉकेट एक शोध रॉकेट है जिसे माप लेने के साथ-साथ अपनी उपकक्षीय उड़ान के दौरान वैज्ञानिक प्रयोग करने के लिए डिजाइन किया गया है।
जून 2020 में भारत ने अपने अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया जिसके बाद से विक्रम-एस निजी क्षेत्र की पहल से प्रक्षेपित किया जाने वाला पहला रॉकेट बन गया है। इसके बाद सरकार ने निजी अंतरिक्ष कंपनियों और इसरो के बीच समन्वय के लिए भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान और प्राधिकरण केंद्र की स्थापना की थी। कुछ समय पहले तक, निजी कंपनियों की भूमिका मुख्य रूप से कुछ अहम पुर्जों और उपप्रणालियों की आपूर्ति तक सीमित थी और यह एक प्रमुख कारण है जिसकी वजह से देश ने अमेरिका में ईलॉन मस्क के स्पेसएक्स जैसी कंपनियों की तरह देश में ऐसी कंपनी का उभार नहीं देखा गया।
स्काईरूट एरोस्पेस एक भारतीय अंतरिक्षप्रौद्योगिकी स्टार्टअप है, जिसकी स्थापना इसरो के दो पूर्व वैज्ञानिकों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के पूर्व छात्रों नागा भरत डाका और पवन चांदना ने 2018 में की थी।
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