भले ही वोडाफोन आइडिया (वीआई) से बकाया ब्याज भुगतान के बदले इक्विटी हिस्सेदारी हासिल करने के सरकार के निर्णय से इस दबावग्रस्त दूरसंचार कंपनी की समस्याएं काफी हद तक दूर होती नजर आ रही हैं, लेकिन अल्पावधि भुगतान और भविष्य में पूंजीगत खर्च बरकरार रखने के लिए प्रवर्तकों/निवेशकों से बड़े पूंजी निवेश की जरूरत होगी।
सरकार ने शुक्रवार को वोडाफोन आइडिया से स्पेक्ट्रम नीलामी की विलंबित किस्तों से संबंधित ब्याज 16, 133 करोड़ रुपये के बकाया ब्याज के बदले कंपनी में इक्विटी हिस्सेदारी मिलने से सरकार 33 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ वोडाफोन आइडिया में सबसे बड़ी भागीदार बन जाएगी।
एक घरेलू ब्रोकरेज फर्म के विश्लेषक का मानना है कि कंपनी में इक्विटी भागीदार के तौर पर सरकार की उपस्थिति ( भले ही वह परिचालन जिम्मेदारियों से दूर रहेगी), इस बाजार में निजी क्षेत्र की मौजूदा तीन कंपनियों को बनाए रखने की प्रतिबद्धता और अल्पावधि कोष उगाही की उम्मीद वोडाफोन आइडिया के परिचालन को मजबूत बनाने की दिशा में एक बड़ी सफलता है।
विश्लेषकों का मानना है कि हालांकि यह एक सकारात्मक बदलाव है, लेकिन कंपनी की राह में पैदा हुईं विभिन्न चुनौतियों को दूर करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है, चाहे बात कर्ज की हो या नेटवर्क में निवेश के अभाव की।
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