भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 18 अगस्त को 'रीसेट ऑफ फ्लोटिंग इंट्रेस्ट रेट ऑन इक्वेटेड मंथली इंस्टॉलमेंट्स (ईएमआई) - बेस्ड पर्सनल लोन्स' नाम से एक सर्कुलर जारी किया विशेषज्ञों का कहना है कि इन नियमों से ब्याज दरें बदलने या रीसेट करने की प्रक्रिया पहले से ज्यादा पारदर्शी हो गई है और उधार लेने वालों को ज्यादा विकल्प भी मिल रहे हैं।
कर्जदारों को विकल्प
पहले रीपो दर बढ़ने पर बैंक कर्ज की मियाद बढ़ा दिया करते थे। जब मियाद बढ़ाने की गुंजाइश ही नहीं रहती थी तब वे मासिक किस्त (ईएमआई) में इजाफा करते थे। यह सब कर्ज लेने वाले से पूछे बगैर खुद ही कर दिया जाता था। लेकिन रिजर्व बैंक के नए नियमों के मुताबिक अब बैंकों को कर्जदार के सामने तीन विकल्प रखने होंगे और पूछना होगा कि उसे तीनों में से क्या पसंद है। ये तीन विकल्ब हैं ईएमआई बढ़ाना, कर्ज की अवधि बढ़ाना या दोनों में थोड़ा-थोड़ा इजाफा|
बैंकबाजार के मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) आदिल शेट्टी कहते हैं, 'उधार लेने वाले जिन लोगों की माली हालत दुरुस्त होती है, वे ईएमआई बढ़ाने का विकल्प चुन सकते हैं ताकि पहले से तय मियाद के भीतर ही कर्ज खत्म हो जाए और ब्याज की रकम बच जाए।'
लेकिन ईएमआई बढ़ाने का मतलब है वित्तीय बोझ पड़ना या घर के बजट के साथ समझौता करना। इंडिया मॉर्गेज गारंटी कॉरपोरेशन के मुख्य परिचालन अधिकारी अनुज शर्मा का कहना है, 'महीने का बोझ ज्यादा होगा तो नकदी कम रहेगी और कर्जदार की दूसरे लक्ष्यों के लिए निवेश करने की क्षमता भी घटती जाएगी।'
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