लखनऊ के बाहरी हिस्से में कुछ दिन पहले एक छोटा किसान कुंवर बहादुर यादव वर्षा की कमी के कारण अपनी धान की फसल मर जाने की आशंका से परेशान था लेकिन अगस्त खत्म होते-होते बारिश आ गई। यादव ने कहा, ‘इन बौछारों ने मेरी धान की फसल बचा ली।’
सुदूर दक्षिण में केरल में लोकप्रिय अभिनेता जयसूर्या को उस समय माकपा के समर्थकों की नाराजगी का सामना करना पड़ा जब उन्होंने ओणम के अवसर पर धान किसानों की दयनीय हालत का जिक्र किया और इसके लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया।
देशभर में करोड़ों धान किसानों के लिए इस साल खरीफ का सत्र आस-निराश से भरा रहा है। पहली बात यह कि खरीफ धान के लिए जीवनदायी दक्षिण पश्चिम मॉनसून देर से आया और जब यह कमजोरी के लक्षण दिखा रहा था तो जुलाई में बरसने लगा। फिर अगस्त में जब फसल कुछ-कुछ बढ़ने लगी तो बारिश अचानक गायब हो गई। पूर्वी भारत में अगस्त में फिर से बारिश हुई लेकिन वहां धान की बोआई में पहले ही देर हो चुकी थी।
नतीजे में इस साल देश में धान का रकबा पिछले वर्ष की तुलना में 4 प्रतिशत अधिक है लेकिन वास्तविक उत्पादन पर अभी से काले बादल मंडरा रहे हैं।
जब बारिश और बादल गायब होने लगे तो सरकार हरकत में आई और कीमतों पर नियंत्रण के लिए कदम उठाए। कुछ ही हफ्तों के दौरान उसने चावल निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया और ऐथनॉल बनाने के लिए खराब अधिशेष चावल देना बंद कर दिया। साथ ही उसने खुले बाजार में बेचे जाने वाले चावल की मात्रा बढ़ा दी।
इससे किसानों पर और असर हुआ। जल्दी बोई गई धान की किस्मों के साथ-साथ बासमती चावल की कीमतों में कटाई से पहले घरेलू बाजार में तेज गिरावट आई। ऐसा लगता है कि निर्यात नियंत्रण के कदम केंद्रीय पूल में कम कीमत वाला चावल होने के कारण उठाए गए।
अगस्त की शुरुआत में 2.43 करोड़ टन का भंडार था जो पिछले साल के इसी महीने से 13.09 फीसदी कम है। इस भंडार में चावल मिलों के पास मौजूद 19.6 लाख टन धान शामिल नहीं है। तमिलनाडु फार्मर्स एसोसिएशन के सुब्बु मुत्तुसामी कहते हैं, ‘चावल निर्यात पर प्रतिबंधों का फैसला हम पर बारिश से ज्यादा भारी पड़ रहा है।’
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