इस साल 20 अप्रैल को पंजाब के कई जिलों से बड़ी तादाद में किसान प्लास्टिक की थैलियों में शिमला मिर्च भर कर बठिंडा-मानसा राष्ट्रीय राजमार्ग पर एकत्रित हुए थे। उसके बाद जो कुछ भी हुआ उसे राहगीर अचंभित हो गए। किसान पकी हुई शिमला मिर्च की थैलियां सड़कों पर फेंक रहे थे और वाहनों से उसे कुचलते हुए देख रहे थे।
जून में भी पंजाब और हरियाणा के किसानों ने दिल्ली-चंडीगढ़ राजमार्ग को जाम कर दिया। वे सूरजमुखी के बीजों की खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की मांग कर रहे थे। किसानों ने कहा कि वे एक योजना के तहत अंतरिम राहत के तौर पर 29.13 करोड़ रुपये की पेशकश से नाखुश हैं। उस योजना के तहत एमएसपी से कम कीमत पर बेची गई उपज के लिए किसानों को 1,000 रुपये प्रति क्विंटल की तय राशि के भुगतान का प्रावधान है। पंजाब में फसलों के विविधीकरण की यही सबसे बड़ी मुसीबत है। अगर किसान विभिन्न तरह की फसलें उगाएं तो धान की कटाई के बाद खेतों में मौजूद फसल अवशेषों की समस्या से निजात पाने में मदद मिल सकती है और उन्हें पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मगर, किसान धान के एमएसपी को ध्यान में रखते हुए बिना एमएसपी वाली अन्य फसलों की ओर रुख करने से हिचकते हैं क्योंकि उन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं मिलता।
इस साल शिमला मिर्च की खेती करने वाले एक किसान ने बताया कि इस सब्जी की बाजार में कीमत 30 से 40 रुपये प्रति किलो है, लेकिन हम इसे 5 रुपये प्रति किलो की दर से ही बेचने के लिए मजबूर हैं। प्रदेश के कई जिलों में कीमत 2 रुपये प्रति किलो तक घट जाती है।
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