सरकार चूक करने वाली या डिफॉल्टर कंपनियों से जुड़े पर्यावरण संबंधी दावों से निपटने के लिए ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) में अहम बदलाव करने के बारे में सोच रही है। सूत्रों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इससे भविष्य में डिफॉल्ट करने वाली कंपनियों के खिलाफ पर्यावरण से संबंधित दावों और देनदारियों से निपटने में तथा जलवायु से जुड़े लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी।
फिलहाल आईबीसी में दावों और कर्ज देने वालों की कई श्रेणियां हैं, जिनमें पर्यावरण से जुड़ी देनदारियां भी शामिल हैं। मगर । विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी देनदारियों के लिए कानून में खास इंतजाम नहीं है और उन्हें आम व्यापारिक देनदारी की तरह ही बरता जाता है।
सूत्र ने कहा, 'पर्यावरण के लक्ष्यों को आईबीसी के साथ जोड़ने के लिए नए दिशानिर्देशों की जरूरत हो सकती है। इस पर और चर्चा करनी होगी कि पर्यावरण से जुड़े दावों पर फैसले कौन करेगा, इसके लिए क्या हर्जाना होना चाहिए, प्रदूषण फैलाने वाली कंपनी को बंद करना है या उसका समाधान करना है।' जलवायु से जुड़ी कार्रवाई को दिवालिया प्रक्रिया के साथ जोड़ना क्यों जरूरी है, इस बारे में दुनिया भर में चर्चा शुरू हो गई है। यह चर्चा 12 सदस्यों का कार्यसमूह कर रहा है, जिसका गठन विश्व बैंक ने इसी साल इन्सॉल इंटरनैशनल और इंटरनैशनल इन्सॉल्वेंसी इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर किया है।
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