पूरे देश में पड़ रही भीषण गर्मी ने इस बार शीतलन उपकरणों की बिक्री बढ़ा दी है। एयर कंडीशनर (एसी) और रेफ्रिजरेटर की बिक्री में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की गई है। मौजूदा शहरी उपभोक्ताओं से बढ़ती मांग के अलावा छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में भी खरीदारी बढ़ रही है।
वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक 2023 के मुताबिक, देश में एसी रखने वाले साल 2010 से तीन गुना बढ़कर प्रति 100 परिवारों में 24 तक पहुंच गए हैं। स्पेस कूलिंग के साथ-साथ ये क्षेत्र भी अब देश में बिजली की मांग बढ़ा रहे हैं। घर-घर में शीतलन उपकरण में वृद्धि के कारण शाम के वक्त बिजली की उच्च मांग देखने को मिली है, जो पहले कार्यालय अवधि के दौरान देखी जाती थी।
आज के वक्त में एसी, फ्रिज और स्पेस कूलिंग रोजमर्रा की जरूरत बन गए हैं मगर अब पर्यावरण प्रति चिंता सताने लगी है। पर्यावरणविदों ने बारबार दोहराया है कि अधिक शीतलन उपकरणों से गर्मी भी बढ़ जाती है। शीतलन उपकरणों में मुख्य रासायनिक गैस हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी) होती है और यही ओजोन परत के हल्के होते जाने का कारण है।
भारत में कम बिजली खपत वाले उपकरणों के लिए स्टार रेटिंग मानक है। साथ ही भारत हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के उत्सर्जन को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन का सदस्य भी है। लेकिन, शीतलन उपकरणों के उपयोग में वृद्धि से निश्चित तौर पर गर्मी बढ़ेगी।
बढ़ते शीतलन उपकरण
अब देश की बिजली मांग का करीब 10 फीसदी स्पेस कूलिंग से आता है, जो साल 2019 में इसकी हिस्सेदारी से 21 फीसदी ज्यादा है। दिल्ली की आई फॉरेस्ट के मुताबिक, साल 2050 तक भारत में घरेलू एसी रखने वालों की संख्या नौ गुना बढ़ने का अनुमान है, जिससे शीतलन के लिए ऊर्जा मांग में भी नौ गुना वृद्धि होगी। आई फॉरेस्ट पर्यावरण के लिए हानिकारक शीतलन रसायनों के खिलाफ एक कार्य योजना तैयार कर रही है।
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