झारखंड में चुनावी बिसात बिछ चुकी है। अपने-अपने मोहरे चलने के लिए राजनीतिक दल तैयार हैं। गठबंधन बनाकर एक-दूसरे को मात देने की रणनीति बनाई जा चुकी है। मौजूदा समय में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस की सरकार है। पिछले चुनाव में हार का मुंह देखने वाली भारतीय जनता पार्टी इस बार यहां अपना प्रदर्शन सुधारने और दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए पूरा जोर लगा रही है। भाजपा ने चुनाव में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (एजेएसयू) के साथ हाथ मिलाया है। राज्य में 43 और 20 नवंबर को मतदान होगा और 23 तारीख को नतीजे आएंगे।
मतदाताओं को लुभाने के लिए झामुमो सरकार ने मुख्यमंत्री मैया सम्मान योजना शुरू की है। इसके अंतर्गत 21 से 50 वर्ष आयु की पात्र महिलाओं को प्रति माह 1,000 रुपये दिए जा रहे हैं। इस योजना में फिलहाल 48,15,048 महिलाएं पंजीकृत हैं। इनमें से 45,36,597 महिलाओं को योजना का लाभ मिल रहा है। इस योजना का विस्तार करते हुए सरकार ने ऐलान किया है कि दिसंबर से पात्र महिलाओं को 2,500 रुपये प्रति माह दिए जाएंगे। सरकार ने यह कदम विपक्षी भाजपा द्वारा इस वादे के बाद उठाया है कि सत्ता में आने पर वह गोगो दीदी योजना लाएगी, जिसमें प्रत्येक महिलाओं को प्रति माह 2,100 रुपये दिए जाएंगे।
इस प्रकार की योजनाओं से राजकीय खजाने पर 9,000 करोड़ रुपये का भार पड़ने की संभावना है, लेकिन ऐसी पहल के लिए धन का इंतजाम करना बहुत बड़ी चुनौती साबित होगा, क्योंकि झारखंड की निजी करों से राजस्व संग्रह की हिस्सेदारी लगभग 30.8 प्रतिशत ही है। इसके अतिरिक्त राज्य में दलित, आदिवासी और महिलाओं आदि वंचित तबकों के लिए पेंशन की आयु भी 60 वर्ष से घटा कर 50 वर्ष कर दी गई है। इससे भी खजाने पर बोझ बढ़ेगा। केंद्रीय पेंशन योजना के तहत भी राज्य सरकार 240.40 करोड़ रुपये का योगदान देती है, जिसमें पात्र लोगों को 1,000 रुपये प्रति माह दिए जाते हैं।
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महिला मतदाताओं की बढ़ती अहमियत
पहली नजर में तो यह चुनाव जीतने का नया और शानदार सियासी नुस्खा नजर आता है। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए नकद बांटो, परिवहन मुफ्त कर दो और सार्वजनिक स्थानों तथा परिवारों के भीतर सुरक्षा पक्की कर दो। बस, वोटों की झड़ी लग जाएगी। यहां बुनियादी सोच यह है कि महिला मतदाता अब परिवार के पुरुषों के कहने पर वोट नहीं देतीं। अब वे अपनी समझ से काम करती हैं और रोजगार, आर्थिक आजादी, परिवार के कल्याण तथा अपने अरमानों को ध्यान में रखकर ही वोट देती हैं।
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वित्त वर्ष 2024 में पहली बार गरीबी अनुपात 5 प्रतिशत से नीचे गिरकर 4.86 प्रतिशत पर आ गया, जो वित्त वर्ष 2023 में 7.2 प्रतिशत था