तर्क दिया जाता है कि इनका अर्थव्यवस्था की संरचना और आर्थिक गतिविधियों के स्वरूपों पर असर पड़ा है। उदाहरण के लिए कहा जाता है कि इन झटकों के कारण असंगठित या अनौपचारिक क्षेत्र पर नकारात्मक असर पड़ा होगा, जिसके कारण औपचारिक क्षेत्र का विस्तार हुआ होगा। अनौपचारिक क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों के स्तर और आकार को मापना इतना चुनौती भरा है कि इस तरह की अवधारणाओं को कसौटी पर कसना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का आधार संशोधित करने के हाल में शुरू किए गए प्रयास और उनकी मदद के लिए किए जा रहे प्राथमिक सर्वेक्षण इस मुद्दे पर कुछ गहन जानकारी दे सकते हैं।
अगर अर्थव्यवस्था के पूरी तरह संगठित या कर चुकाने वाले वर्गों पर ही ध्यान दें तो आयकर रिटर्न से मिली जानकारी अर्थव्यवस्था में नए पनपते कुछ रुझानों की झलक देती है। एक नया और उभरता हुआ रुझान है परोक्ष आय की हिस्सेदारी बढ़ना। वेतन और कारोबारी आय को प्रत्यक्ष आय की श्रेणी में रखा जाए और दूसरे सभी स्रोतों से हुई आय को परोक्ष आय माना जाए तो देख सकते हैं कि कुल बताई गई आय में परोक्ष आय की हिस्सेदारी कर निर्धारण वर्ष (असेसमेंट इयर) 2023-24 में 24 फीसदी हो गई है। यह हिस्सेदारी असेसमेंट इयर 2016-17 में 16 फीसदी ही थी। इसमें आवास संपत्ति से हुई आय, दीर्घकालिक और अल्पकालिक पूंजीगत लाभ तथा अन्य स्रोत, मसलन ब्याज आय और लाभांश शामिल हैं। दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ में खास तौर पर बेहद तेज इजाफा हुआ और यह 2.36 फीसदी से बढ़कर 8 फीसदी हो गया।
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