विकास में कृषि की भूमिका संबंधी तमाम दस्तावेजों से स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था में ढांचागत बदलाव मुख्य तौर पर अर्थव्यवस्था के उत्पादन में कृषि की घटती हिस्सेदारी को दर्शाता है। साथ ही अर्थव्यवस्था के निम्न आय से मध्य एवं उच्च आय की ओर रुख करने के साथ ही इसकी रोजगार में हिस्सेदारी में गिरावट का भी पता चलता है। इसी आधार पर वृद्धि एवं विकास के लिए बनाई जा रही नीतियों में भी अब गैर कृषि क्षेत्रों, विशेषकर विनिर्माण पर जोर दिया जा रहा है।
इस विचार की जड़ ब्रिटिश अर्थशास्त्री आर्थर लुईस (1954) के काम में दिखती है। उन्होंने आर्थिक विकास का वर्णन वृद्धि की उस प्रक्रिया के तौर पर किया है जिसके तहत संसाधन कम उत्पादकता एवं पारंपरिक तकनीक वाले कृषि क्षेत्र से अधिक उत्पादकता वाले आधुनिक औद्योगिक क्षेत्रों में स्थानांतरित होते हैं। यह सिद्धांत आर्थिक विकास कृषि की काफी निष्क्रिय भूमिका बताता है, लेकिन औद्योगीकरण का समर्थन करने वाले कई विकासशील देश बड़े पैमाने पर अपने उद्योगों को सहारा देने के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं।
हरित क्रांति के बाद विकास के लुईस मॉडल की कुछ धारणाओं का खंडन किया गया। पहले, हरित क्रांति से पता चला कि प्रौद्योगिकी कृषि को आधुनिक बनाने और उद्योग की कल्पना के अनुसार अधिशेष पैदा करने में महती भूमिका निभा सकती है। दूसरा, खेती में श्रम की असीमित आपूर्ति की धारणा भी अब मान्य नहीं रही है। इन बदलावों का कृषि अर्थव्यवस्था से औद्योगिक अर्थव्यवस्था में आर्थिक बदलाव के मॉडल पर असर पड़ता है।
हालिया अनुभव
विकासशील और तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था के मामले में बीते तीन से चार दशकों का अनुभव दर्शाता है कि कार्यबल को कृषि से स्थानांतरित करने की प्रक्रिया काफी धीमी है और ये सुचारु भी नहीं है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में भी कृषि की हिस्सेदारी में काफी तेजी से गिरावट देखी जा रही है जबकि रोजगार हिस्सेदारी में काफी कम गिरावट आई है।
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वित्त मंत्रालय द्वारा जारी सार्वजनिक उद्यमों के ताजा सर्वे के मुताबिक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सीपीएसई) का कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) पर खर्च वित्त वर्ष 2024 में 19 प्रतिशत बढ़कर 4,911 करोड़ रुपये हो गया है।
आगाज पर चमके 5 कंपनियों के शेयर
शेयरधारकों को सूचीबद्धता पर 18 फीसदी से लेकर 159 फीसदी तक का फायदा हुआ
ईटीएफ, इंडेक्स फंड फोलियो बढ़े
इंडेक्स फंडों और एक्सचेंज-ट्रेडेड फंडों (ईटीएफ) ने 2024 में निवेश खातों में शानदार इजाफा दर्ज किया है। सेक्टोरल और थीमेटिक निवेश के प्रति उत्साह बढ़ने से इन फोलियो में तेजी देखने को मिली। इंडेक्स फंडों में निवेश खाते या फोलियो चालू कैलेंडर वर्ष के दौरान दोगुने होने की ओर हैं जबकि ईटीएफ में फोलियो पहले ही 37 प्रतिशत बढ़ चुके हैं, हालांकि दिसंबर के आंकड़े अभी बाकी हैं। नवंबर में समाप्त 11 महीनों के दौरान पैसिव निवेश खंड में प्रबंधन अधीन परिसंपत्तियां (एयूएम) 23 प्रतिशत बढ़कर 11 लाख करोड़ रुपये हो गईं।
दिसंबर के पहले पखवाड़े में ऋण-जमा 11.5 फीसदी बढ़ा
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि 13 दिसंबर को समाप्त हुए पखवाड़े में ऋण वृद्धि ने रफ्तार पकड़ी है।