यह कहते हुए बुमराह मुस्करा रहे थे मगर बाद में हम सभी ने देखा कि उन्होंने जो कहा वह कर भी दिखाया। ऑस्ट्रेलिया में चल रही बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के पहले टेस्ट में बुमराह को टीम की कप्तानी का मौका मिला और उन्होंने अपने हुनर का जौहर दिखाते हुए न सिर्फ टीम को मैच जिताया बल्कि प्लेयर ऑफ द मैच का खिताब भी अपने नाम कर लिया। आस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम को उसकी ही जमीन पर हराना आसान नहीं है और भारत पर्थ के मैदान में उसे हराने वाली पहली टेस्ट टीम बन गया।
उसी शाम कई दूसरे भारतीय गेंदबाजों के नाम भी सुर्खियों में थे मगर वजह मैदान के बाहर थी। असल में अगले साल होने वाले इंडियन प्रीमियर लीग के लिए नीलामी चल रही थी, जिसमें पेसर अर्शदीप सिंह 18 करोड़ रुपये में बिके थे। आईपीएल में इससे पहले कोई भारतीय गेंदबाज इतनी कीमत नहीं वसूल पाया था। उनके साथ युजवेंद्र चहल भी 18 करोड़ रुपये बटोरकर सबसे महंगे स्पिनर बन गए।
इस साल आईपीएल में छह भारतीय गेंदबाजों ने 10 करोड़ रुपये या उससे अधिक की बोली हासिल की है। खेल वेबसाइट ईएसपीएन के आंकड़े बताते हैं कि आईपीएल की दस टीमों ने 71 गेंदबाजों पर करीब 285 करोड़ रुपये खर्च किए और 32 बल्लेबाज करीब 117 करोड़ रुपये में बिके हैं।
कुछ साल पहले कोई ऐसा सोच तक नहीं सकता था। भारत को पहली बार विश्व कप का खिताब जिताने वाले कप्तान कपिल देव ने 2012 में कहा था, 'भारत में बल्लेबाजों का दर्जा अफसर की तरह रहा है और गेंदबाजों का मजदूर की तरह।' कपिल खुद भी नई गेंद के कारामाती गेंदबाज रहे हैं और किसी जमाने में सबसे ज्यादा टेस्ट तथा एकदिवसीय विकेट लेने के रिकॉर्ड भी उनके नाम थे।
बाद के सालों में धीरे-धीरे महसूस होने लगा कि मैच जिताने में गेंदबाजों की भूमिका कितनी अहम है। बतौर ओपनर टेस्ट क्रिकेट खेल चुके विकेटकीपर और अब कमेंटेटर दीप दासगुप्ता कहते हैं, 'पिछले कुछ साल में मैच गेंदबाजों के दम पर जीते जा रहे हैं। हो सकता है किसी दिन बदकिस्मती से बल्लेबाज खाता खोले बगैर ही आउट हो जाए मगर गेंदबाज को तो हर मैच में तय ओवर फेंकने ही पड़ते हैं। इसलिए भी फ्रैंचाइजी अब गेंदबाजों पर रकम खर्च करने लगे हैं।' मगर ब्रांड अब भी अहमियत नहीं समझ रहे।
बल्लेबाजों का दबदबा
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