बेशक, सावधानी बरतनी ही पड़ती थी। उस समय निर्यात करने वाली कंपनियों को करों में छूट और सब्सिडी मिलने के कारण अक्सर कारोबार के आंकड़े बढ़-चढ़ जाते थे और ‘फर्जी निर्यात’ का जोखिम भी था। लेकिन कारोबार का आकार, प्रवर्तकों की योग्यता, नकदी प्रवाह, कर्ज और दूसरे पैमाने जांचकर इससे निपटा जा सकता था। केवल निर्यात पर ध्यान देने से ही पिछले 30 साल की सबसे ज्यादा बढ़त हासिल करने वाली कंपनियां मिल गई होतीं: दवा कंपनियां।
क्या यही तर्क किसी देश पर भी लागू हो सकता है? हैरत की बात नहीं है कि सभी विकसित देशों का निर्यात क्षेत्र बेहद मजबूत है। उन चार-पांच देशों का तो खास तौर पर मजबूत है, जो पिछले 100 साल में केवल एक ही पीढ़ी के भीतर विकसित देश बन गए हैं। विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन (अंकटाड) ने लगभग 200 देशों के लिए प्रति व्यक्ति निर्यात के आंकड़े इकट्ठे किए हैं। उस सूची में भारत 153वें स्थान पर है, जबकि दक्षिण कोरिया 44वें और ताइवान 35वें पर है। अगर आपको लगता है कि सेवा निर्यात में भारत महाशक्ति से कम नहीं है तो आपको झटका लगेगा क्योंकि इस मामले में भारत 114 देशों में 89वें पायदान पर ही है। मलेशिया, तुर्किए और थाईलैंड जैसे देश भी इस फेहरिस्त में भारत से आगे हैं।
पिछले कुछ दशकों में जिन देशों में बहुत संभावनाएं दिखती थीं और माना जाता था कि जल्द ही वे धनी राष्ट्र का दर्जा हासिल कर लेंगे, उनके प्रति व्यक्ति निर्यात आंकड़े काफी खराब हैं। ब्राजील जैसे ये देश अपेक्षाओं पर खरे भी नहीं उतर पाए। दुनिया का विनिर्माण का अड्डा कहलाने वाला चीन भी निर्यात के मामले में 103वें पायदान पर है। इसकी दो वजहें हो सकती हैं: चीन की आबादी बहुत अधिक है और वहां से जापान, ताइवान और कोरिया के मुकाबले कम मूल्य के माल का निर्यात होता है।
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अमेरिका को निर्यात बढ़ाने की तैयारी पर जोर
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रियल एस्टेट के लिए मिलाजुला साल
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चयन की प्रक्रिया पर कांग्रेस की असहमति
मानवाधिकार आयोग चयन समिति
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भारत-अमेरिका एफटीए की परिकल्पना
इस समय एकदम सही अवसर है, जिसका लाभ उठाकर भारत और अमेरिका के रिश्तों को और अधिक गहराई प्रदान की जा सकती है।
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त्रिनयनी (जी तेलुगू पर इसी नाम से आ रहे धारावाहिक की मुख्य किरदार) के पास भविष्य देखने की शक्ति है, जिससे वह अपने परिवार की रक्षा करती है।