राम मंदिर आंदोलन के लिए राजधानी दिल्ली में वर्षों से तैयारियां चल रही थी। युवाओं से लेकर संघ के कार्यकर्ताओं व आम लोगों को एकत्र किया जा रहा था, लेकिन इस बात को ध्यान में रखकर की बाहर पुलिस, सीआईडी, आईबी और अन्य जांच एजेंसियों की नजर है।
इसलिए बैठकों का स्थान गुप्त रखा जाता था और हर दिन बैठकों का स्थान बदल दिया जाता था। संघ से जुड़े धर्मवीर शर्मा के कंधों पर उन दिनों आंदोलन के लिए टीमें तैयार करने की जिम्मेदारी थी। पुरानी दिल्ली उस वक्त बैठकों का केंद्र हुई करती थी, जहां से कार सेवा करने जा रहे लोगों को दिशानिर्देश दिए जाते थे।
पुलिस से बचते हुए लखनऊ और अयोध्या पहुंचे: आंदोलन में हिस्सा लेने जा रहे लोगों को गाजियाबाद, कानपुर और लखनऊ में ट्रेन से उतरते ही गिरफ्तार किया जा रहा था। इसलिए दिल्ली से कार सेवा करने जा रहे लोगों को लखनऊ और फैजाबाद के फर्जी पते दिए गए।
धर्मवीर शर्मा ने बताया कि उस वक्त मोबाइल फोन नहीं था। इसलिए सबसे ज्यादा लखनऊ के फर्जी पते दिल्ली से जा रहे लोगों को दिए गए। उनसे कहा गया कि अगर पुलिस पूछे कि आप लोग कहां जा रहे हैं तो फिर इस पते पर अपने मां-मौसी या कोई दूसरे रिश्तेदार बता देना। इसका असर यह हुआ कि बड़ी संख्या में लोग पुलिस से बचते हुए लखनऊ और फिर अयोध्या पहुंचने में कामयाब रहे।
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