सीएसडीएस सर्वेक्षण के अनुसार इस बार के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने पार्टियों के प्रचार प्रसार, वादे और घोषणा पत्र का आकलन करने के बाद तय किया की किसे वोट देना है।
मतदाताओं ने मतदान से पहले ये भी आकलन किया कि कौन जीत सकता है, उसी के आधार पर किसे वोट देना है तय किया गया। आंकड़े -बताते हैं कि भाजपा की तुलना में कांग्रेस और राज्य की पार्टियों ने डोर टू डोर प्रचार और सोशल मीडिया के जरिए मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित किया। इसका असर नतीजों पर दिखा।
चुनाव प्रचार के दौरान मतदान का फैसला: सर्वेक्षण में मतदाताओं से जब पूछा गया कि उन्होंने कब फैसला किया कि वे किसे वोट करेंगे। इसके जवाब में 41 फीसदी मतदाताओं बताया कि किसे वोट देना है इसका फैसला उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान किया। 28 फीसदी ने किसे वोट देना है। ये पहले ही तय कर लिया था। जबकि 28 फीसदी ने बाद में तय किया कि उन्हें किसे वोट देना है। अन्य ने जवाब देने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
मतदान से चंद दिन पहले तय किया, किसे देना है वोट: सर्वेक्षण के अनुसार 28 फीसदी मतदाताओं ने वोट किसे देना है इसका फैसला उम्मीदवार के नाम की घोषणा होने के बाद किया, ये वे मतदाता हैं जिन्होंने सबसे पहले फैसला लिया था कि किसे वोट देना है। वहीं मतदाताओं के एक वर्ग ने मतदान से एक या दो दिन पहले तय किया कि वे किसे वोट देंगे।
प्रचार में मतदाताओं की रुचिः सर्वेक्षण में शामिल 71 फीसदी मतदाताओं ने चुनाव प्रचार में रुचि दिखाई। ये आंकड़ा इस बात का संकेत है कि लोग चुनाव प्रचार के माध्यम से जानना चाहते थे कि चुनाव लड़ रही पार्टियां क्या वादे कर रही हैं और भविष्य में उसकी क्या योजना है। वहीं 23 फीसदी मतदाताओं की चुनाव प्रचार में कोई भी रुचि नहीं थी। अन्य ने इस इस मुद्दे पर कोई भी जवाब देना उचित नहीं समझा।
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