लोक परंपरा और इनके विभिन्न आयामों पर गुवाहाटी में 21 सितंबर से 24 सितंबर, 2022 तक लोकमंथन विमर्श का आयोजन हुआ। भोपाल और रांची के बाद यह तीसरा लोकमंथन कार्यक्रम था। गुवाहाटी के श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में चार दिनों तक 11 सत्रों में 3 दर्जन से अधिक वक्ताओं के साथ चले इस लोक-विमर्श का प्रारंभ पूर्वोत्तर राज्यों असम, अरुणाचल, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय व अन्य के लोकनृत्यों से हुआ। समापन के समय विमर्श को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले जी का सानिध्य भी मिला।
यह मिलन का उत्सव था जहां लोक से लोक मिल रहा था। यह सृजन का उत्सव था जहां संस्कृति और संस्कार नवीन रूप में सृजित हो रहे थे। यह कला का उत्सव था जहां सुर-लय-ताल था तो गायन, वादन और नृत्य भी था। गुवाहाटी में संपन्न लोक-विमर्श के सबसे बड़े उत्सव को सामने रखता पाञ्चजन्य का विशेष आयोजन।
ऐसे बना लोकमंथन का लोगो
गुवाहाटी में संपन्न लोकमंथन का लोगो विविधता में भारत की एकता का प्रतीक है। लोगो में तीन प्रमुख घटक हैं - हिमालयी बादल, अष्टदल कमल और मकर कुंडल। बादल हमारे देश को परिभाषित करने वाले सद्भाव और प्रेम के प्रतीक हैं। बौद्ध तिब्बती पारंपरिक चित्रों में सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक माना जाता है, बादल भारत की सदियों पुरानी विरासत के आकाशीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और पृथ्वी पर देवताओं द्वारा बरसाए गए आशीर्वाद के रूप में होते हैं।
अष्टदल कमल या आठ पंखुड़ियों वाला कमल पवित्रता, ज्ञानोदय, आत्म-पुनरुद्धार, समृद्धि और ब्रह्मांडीय सद्भाव का प्रतीक है। कमल की पंखुड़ियों में प्रयुक्त प्रत्येक रंग देश की जीवंत सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाता है। मकर कुंडल, विष्णु से लेकर शिव से लेकर सूर्य तक, कामदेव से लेकर देवी चंडी तक कई हिंदू देवताओं द्वारा सजाए गए मकर के आकार के झुमके हैं। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि मकर भगवान कामदेव का प्रतीक था, जिन्हें मकरध्वज के नाम से भी जाना जाता था।
विचार-मंथन की हमारी - महान विरासत
सत्र - उद्घाटन सत्र
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