सामने विरोध, पीछे गलबहियां
Panchjanya|November 27, 2022
सत्ता पाने के लिए कांग्रेस कुछ भी कर सकती है। जिस गांधी परिवार ने सार्वजनिक तौर पर पहले राजीव गांधी के हत्यारों को माफ करने की बात कही थी, अब उनकी रिहाई पर चुप है। लेकिन कांग्रेस केंद्र सरकार पर चुप्पी का आरोप मढ़ रही है। जो डीएमके रिहाई के फैसले का स्वागत कर ही है, उसके साथ कांग्रेस का गठबंधन है
प्रमोद जोशी
सामने विरोध, पीछे गलबहियां

राजीव गांधी की हत्या से जुड़े दोषियों की रिहाई के बाद देश में कई प्रकार की प्रतिक्रियाएं और कई प्रश्न हैं। पहला यह कि क्या सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए आजीवन कारावास के दोषियों की रिहाई का आदेश दे सकता है ? दूसरा, इस मामले में केंद्र की राय मानी जाएगी या राज्य सरकार की ? क्या राज्य सरकार को पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या जैसे गंभीर मामले में आतंकियों को माफ करने का अधिकार है? सवाल यह भी है कि उम्र कैद की सजा का भी कोई अंत होना चाहिए या नहीं? उम्र कैद ही नहीं, बगैर मुकदमे के बरसों से जेल में बंद कैदियों की रिहाई का मसला भी तो है।

इसके कानूनी दायरे पर न्यायविदों को विचार करना है, पर इस दायरे से बाहर कुछ ज्यादा जरूरी सवाल हैं। पहला यह कि क्या ऐसे मामलों को राजनीतिक दृष्टि से देखना चाहिए? इस सिलसिले में कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया अपने आप में अजूबा है। पार्टी ने आधिकारिक रूप से इस रिहाई का विरोध और प्रकारांतर से केंद्र सरकार के दृष्टिकोण का समर्थन किया है। हालांकि गांधी परिवार की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, पर पार्टी की आधिकारिक प्रतिक्रिया में परिवार के दृष्टिकोण से असहमति व्यक्त की गई है। अतीत में सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि राजीव गांधी के सभी हत्यारों को माफ कर दिया जाए।

पार्टी बनाव परिवार

परिवार और पार्टी के बयानों की विसंगति यहीं तक सीमित नहीं है। इस मामले में कांग्रेस और तमिलनाडु में उसकी गठबंधन सहयोगी डीएमके के नजरियों में बुनियादी अंतर है। एक समय था, जब मामले को लेकर जैन आयोग की खबर लीक हो जाने पर कांग्रेस ने इंद्र कुमार गुजराल की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था । लेकिन आज कांग्रेस और डीएमके के औपचारिक दृष्टिकोणों में टकराव होने के बावजूद कोई जुंबिश नहीं है। कांग्रेस ने इसका हल्का सा जिक्र करने के बाद खामोशी ओढ़ ली है। क्या इसे खाने और दिखाने के दांतों का मामला मानें? अभिषेक मनु सिंघवी दिल्ली में शीर्ष अदालत के आदेश का विरोध कर रहे थे, तो तमिलनाडु में नलिनी के घर के बाहर आतिशबाजी चल रही थी। डीएमके के नेता इसे अपनी विजय के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। 

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