आज तक के राजनीतिक इतिहास में कभी ऐसी घटना नहीं घटी, जो 8 दिसंबर को गुजरात में घटी। सभी राजनीतिक पंडितों के अनुमानों को ध्वस्त करते हुए भाजपा ने विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत प्राप्त की। 1960 में गुजरात राज्य के गठन के बाद से आज तक के इतिहास में कभी किसी भी पार्टी को गुजरात में इतनी भव्य जीत नहीं मिली थी। 1985 में माधवसिंह सोलंकी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 148 सीटें जीती थीं। कांग्रेस के कीर्तिमान को 2022 में भाजपा ने तोड़ दिया। भाजपा ने 182 में 156 सीट पर जीत दर्ज की। 27 साल से राज कर रही भाजपा के विरुद्ध सत्ता विरोधी लहर भी नहीं दिखी और उसने 16वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव को बहुत ही दमदार तरीके से जीत लिया। मतदाताओं ने राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का यह हाल किया कि वह विपक्ष में बैठने लायक भी नहीं रही।
इस चुनाव ने कई आशंकाओं को समाप्त किया है और अनेक प्रश्नों के उत्तर भी दिए हैं। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आशंका पैदा हुई थी कि गुजरात को कौन संभालेगा? राज्य में भाजपा का भविष्य क्या होगा? मोदी की जगह जो भी नेता मुख्यमंत्री बनेगा, वह लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतर पाएगा या नहीं? रुपाणी के बाद 2017 में पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया। कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसे मुद्दा भी बनाया और कहा कि भाजपा ने हार के डर से सरकार बदली है। पर इन बातों का गुजरात के लोगों पर कोई असर नहीं हुआ और उन्होंने एक बार फिर से भाजपा को राज्य की सत्ता दे दी। दरअसल, भूपेंद्र पटेल ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में कुछ ही समय में कई सकारात्मक कार्य किए। इससे जो थोड़ी-बहुत सत्ता विरोधी लहर थी, वह पूरी तरह खत्म हो गई। इस कारण पूरे राज्य में भाजपा की ऐसी लहर चली कि उसने अमदाबाद, सूरत, वडोदरा और राजकोट की 55 में से 53 सीटों पर जीत दर्ज की। कच्छ की छह में से छह सीटों पर भाजपा को जीत मिली। हालांकि कुछ जगहों पर कुछ कमी का सामना करना पड़ा। इस कारण वहां भाजपा को हार भी मिली। इसका उदाहरण है पाटन जिला। इस जिले की तीनों सीटों पर भाजपा हार गई।
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