आज बड़े प्रकाशन जो पत्रिकाएं छाप रहे हैं, उनमें और 'पाञ्चजन्य' में कोई तुलना ही नहीं है। 'पाञ्चजन्य' की पत्रकारिता बेबाक है। आज भारत की कौन-सी पत्रिका है, जो एमेजॉन पर सवाल खड़े कर सकती है? कुनीतियों और कुरीतियों को 'पाञ्चजन्य' ही रेखांकित कर सकती है।
इसी पत्रिका में रामधारी सिंह दिनकर का साक्षात्कार प्रकाशित हुआ, जिसमें वह कहते हैं, "धन को मैं धूल समझता हूं, जीवन का मूल समझता मैं। अब याचना नहीं, रण होगा।" 1947 में अटल बिहारी वाजपेयी कहते हैं, "उल्लास कैसे मनाऊं, अभी तो आजादी अधूरी है।" विचार की दृष्टि से दिनकर जी और पाञ्चजन्य के तत्कालीन संपादक स्व. अटल बिहारी वाजपेयी भले ही भिन्न हों, लेकिन 'पाञ्चजन्य' में सबके लिए स्थान था और आज भी है। देश को जानने-समझने का यह उदार तरीका कहीं और देखने को नहीं मिलता है।
केरल में जब कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी थी, तब अटल जी ने अपने भाषण में कहा था कि कम्युनिस्ट पार्टी के पास यह साबित करने का बहुत अच्छा मौका है कि वे लोकतांत्रिक तरीके से सरकार चला सकते हैं। जो यह उनके डीएनए के खिलाफ है। उन्होंने बहुत बड़ी बात कही थी। अटल जी सीधा और साफ बोलते थे।
1985-88 के बाद साहित्य की मांग भी बहुत थी और इस क्षेत्र में शोध भी होने लगे थे। लेकिन 1990 के दशक में हिंदी साहित्य का स्तर काफी गिर गया। एक ही ढर्रे पर किताबें लिखी जा रही थीं। लेकिन सोशल मीडिया के आने के बाद यह फायदा हुआ है कि आज अपनी बात रखने के लिए सभी के पास अपना मंच है। कोई किसी का मोहताज नहीं है। इससे 'मठाधीशी' टूटी है। यह बहुत सुकून वाला समय है, क्योंकि अगर आप कुछ प्रतिपादित कर रहे हैं, कोई विचार रख रहे हैं तो आपके समर्थक भी हैं, आपके खिलाफ खड़े होने वाले लोग भी हैं। इस समय अनेक युवा लेखक हमारे साथ जुड़ रहे हैं तो कई ऐसे हैं जो पौराणिक ग्रंथों को पढ़कर दोबारा उस पर काम कर रहे हैं। अतीत में जो चीजें दबा दी गईं या विलुप्त हो गईं, उनका प्रतिपादन कर रहे हैं, उनको फिर से सामने ला रहे हैं। यह सोशल मीडिया के युग में संभव हो पाया। यह वो मंच है, जिसने सबको लेखक बना दिया है।
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शिक्षा, स्वावलंबन और संस्कार की सरिता
रुद्रपुर स्थित दूधिया बाबा कन्या छात्रावास में छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जा रहा। इस अनूठे छात्रावास के कार्यों से अनेक लोग प्रेरणा प्राप्त कर रहे
शिवाजी पर वामंपथी श्रद्धा!!
वामपंथियों ने छत्रपति शिवाजी की जयंती पर भाग्यनगर में उनका पोस्टर लगाया, तो दिल्ली के जेएनयू में इन लोगों ने शिवाजी के चित्र को फाड़कर फेंका दिया। इस दोहरे चरित्र के संकेत क्या हैं !
कांग्रेस के फैसले, मर्जी परिवार की
कांग्रेस में मनोनीत लोगों द्वारा 'मनोनीत' फैसले लिये जा रहे हैं। किसी उल्लेखनीय चुनावी जीत के बिना कांग्रेस स्वयं को विपक्षी एकता की धुरी मानने की जिद पर अड़ी है जो अन्य को स्वीकार्य नहीं हैं। अधिवेशन में पारित प्रस्ताव बताते हैं कि पार्टी के पास नए विचार के नाम पर विफलताओं का जिम्मा लेने के लिए खड़गे
फूट ही गया 'ईमानदारी' का गुब्बारा
अरविंद केजरीवाल सरकार की 'कट्टर ईमानदारी' का ढोल फट चुका है। उनकी कैबिनेट के 6 में से दो मंत्री सलाखों के पीछे। शराब घोटाले में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की जांच की आंच कभी भी केजरीवाल तक पहुंच सकती है
होली का रंग तो बनारस में जमता था
होली के मौके पर होली गायन की बात न चले यह मुमकिन नहीं। जब भी आपको होली, कजरी, चैती याद आएंगी, पहली आवाज जो दिमाग में उभरती है उसका नाम है- गिरिजा देवी। वे भारतीय संगीत के उन नक्षत्रों में से हैं जिनसे हिन्दुस्थान की सुबहें आबाद और रातें गुलजार रही हैं। उनका ठेठ बनारसी अंदाज। सीधी, खरी और सधुक्कड़ी बातें, लेकिन आवाज में लोच और मिठास। आज वे हमारे बीच नहीं हैं। अब उनके शिष्यों की कतार हिन्दुस्थानी संगीत की मशाल संभाल रही है। गिरिजा देवी से 2015 में पाञ्चजन्य ने होली के अवसर पर लंबी वार्ता की थी। इस होली पर प्रस्तुत है उस वार्ता के खास अंश
आनंद का उत्कर्ष फाल्गुन
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नागालैंड की जीत और एक मजबूत भाजपा
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सूर्योदय की धरती पर फिर खिला कमल
त्रिपुरा और नागालैंड की जनता ने शांति, विकास और सुशासन के भाजपा के तरीके पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई है। मेघालय में भी भाजपा समर्थित सरकार बनने के पूरे आसार। कांग्रेस और वामदल मिलकर लड़े, लेकिन बुरी तरह परास्त हुए और त्रिपुरा में पैर पसारने की कोशिश करने वाली तृणमूल कांग्रेस को शून्य से संतुष्ट होना पड़ा
जीवनशैली ठीक तो सब ठीक
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