प्रश्न मुफ्त की रेवड़ी नहीं, उसे दे पाने का है
Panchjanya|29 January 2023
पाञ्चजन्य के 75 वर्ष पूरे होने पर हुए कार्यक्रम में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने विभिन्न ज्वलंत प्रश्नों के बेबाक उत्तर दिए। उन्होंने साफ कहा कि मुफ्त की रेवड़ी विषय नहीं है, विषय उसे दे पाने की क्षमता का है। उन्होंने कहा कि मध्यम वर्ग की परेशानियां सरकार के ध्यान में हैं। प्रस्तुत है पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर और तृप्ति श्रीवास्तव के साथ निर्मला सीतारामन की बातचीत के संपादित अंश :-
संपादक हितेश शंकर और तृप्ति श्रीवास्तव
प्रश्न मुफ्त की रेवड़ी नहीं, उसे दे पाने का है

निर्मला जी! सभी लोग आपको सुनने के लिए इस सभागार में और बाहर व्यग्र हैं क्योंकि आप देश का पांचवां बजट पेश करने वाली हैं। पिछले पांच बजटों में आपको सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण बजट कौन-सा लगा ?

सर्वप्रथम धन्यवाद कि मुझे आज पाञ्चजन्य का 75वां वर्ष पूरा होने के समारोह में आपके समक्ष बात करने का अवसर मिल रहा है। मैं आपके प्रश्न का नीरस जवाब देने वाली हूं। हर बजट चुनौतीपूर्ण होता है। हर साल का बजट उनकी अपनी चुनौती के साथ ही आता है।

अगर एनपीए की बात करें तो पिछले 7-8 सालों में काफी सुधार आया है। ऐसा क्या था कि पिछली सरकारों में उनका प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा और ऐसा क्या किया गया है कि अब ये सुधार की तरफ दिखाई दे रहा है।

पिछले सरकार और इस सरकार में फर्क बैंकों के साथ व्यवहार करने के तरीके में है। जमीन-आसमान का फर्क है और सैद्धांतिक रूप से वैचारिक फर्क भी है। एक पेशेवर संस्था के रूप में बैंकों का देश की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान है और उनको पेशेवराना रुख के साथ चलाने की स्वतंत्रता देनी चाहिए। ये है मोदी जी का पक्ष। विभिन्न पूर्ववर्ती सरकारों का रवैया यह था कि हमारी अपनी पार्टी के कार्यकर्ता, भतीजा, भाई, बहन, जीजा जी सब, कैसे उनसे अवैध लाभ ले सकते हैं, इसके लिए पूरी बेशर्मी के साथ बैंकों का उपयोग करना। यही है मौलिक अंतर। 

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