श्रीगणेशपञ्चरत्नम्
Jyotish Sagar|September 2023
आद्य शंकराचार्य ने भगवान् गणेश की स्तुति हेतु 'श्रीगणेशपञ्चरत्नम्’ नामक सुन्दर स्तोत्र की रचना की। इस स्तोत्र में छह पद हैं। अन्तिम पद में फलश्रुति का वर्णन करते हुए कहा गया है कि प्रतिदिन इस स्तोत्र का प्रात:काल पाठ करने पर आरोग्य, निर्दोषत्व, सत्साहित्य में उपलब्धि, सुपुत्र लाभ, लम्बी आयु और आठों विभूतियाँ प्राप्त हो जाती हैं। इसी कारण इस स्तोत्र का पाठ विद्यार्थियों, कलाविदों, साहित्यकारों, विद्वानों, शिक्षकों, लेखकों आदि को करने की सलाह दी जाती है।
श्रीगणेशपञ्चरत्नम्

इस स्तोत्र में विघ्नविनाशक भगवान् श्रीगणेश के स्वरूप और उनके प्रसाद का वर्णन है। प्रथम पद में कहा गया है कि मोदकप्रिय गणेश विनायक चन्द्रमा का मुकुट धारण किए हुए हैं। यह उनके स्वरूप की शोभा को वर्णित करता है। मोदक मुदिता का और कलाधर अवतंस शीतल प्रकाश का प्रतीक है। अनाथों के नाथ भगवान् विनायक भक्तों के अशुभों का उसी प्रकार नाश करते हैं, जैसे उन्होंने गजासुर का वध किया था। 

गणेश चतुर्थी से प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ किया जा सकता है। पाठ से पूर्व महागणपति का यथाविधि पूजन करना चाहिए। तदुपरान्त निम्नलिखित मानस पूजा भी सम्पन्न करनी चाहिए। उपचार पूजा से अधिक मानस पूजा का महत्त्व स्वीकार किया गया है। निम्नलिखित पूजा मन्त्रों का उच्चारण करने के साथ उनमें वर्णित वस्तुओं के समर्पण का मन-मस्तिष्क में भाव उत्पन्न करें-

लं पृथिव्यात्मकं गन्धं महागणाधिपतये समर्पयामि नमः ।

हं आकाशात्मकं पुष्पं समर्पयामि नमः ।

महागणधि यं वाय्वात्मकं धपं महागणधिपतये घ्रापयामि नमः ।

रं वह्न्यात्मकं दीपं महागणधिपतये दर्शयामि नमः।

वं अमृतात्मकं नैवेद्यं महागणाधिपतये निवेदयामि नमः ।

सं सर्वात्मकं ताम्बूलं महागणाधिपतये समर्पयामि नमः ।

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