पितरों का सम्मान करना हमारा नैतिक कर्त्तव्य
Jyotish Sagar|September 2023
हमें भारतीय संस्कृति पर पूर्ण विश्वास करते हुए अपना नैतिक कर्त्तव्य समझकर अपने पूर्वजों के प्रति कर्त्तव्यपालन करना चाहिए, क्योंकि पितरों का सम्मान करना हमारा नैतिक कर्त्तव्य है।
डॉ. विभा खरे
पितरों का सम्मान करना हमारा नैतिक कर्त्तव्य

भारतीय संस्कृति में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना अनूठी है। हमारी संस्कृति में केवल अपने घर-परिवार के ही नहीं, वरन् सम्पूर्ण दुनिया के नागरिकों को एक परिवार के रूप में सम्मान देने की बात कही गई है। भारतीय संस्कृति में अपने पूर्वजों एवं पितरों के सम्मान के लिए नैतिक कर्त्तव्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। भाद्रपद मास पूर्णिमा से पितृपक्ष शुरू हो जाता है।

ऐसी मान्यता है कि पुरखों को जब उनका वंशज श्राद्धकर्म करके जलांजलि देकर उनकी आत्मा को तृप्ति प्रदान करता है, तो दिवंगत हो चुके उसके परिवार के सदस्यों के पुरखे उसे स्वर्ग से ही आशीर्वाद देते हैं। इसके बाद मृत्यु वाली तिथि को परिवार के सदस्य हवन-पूजन के साथ श्राद्धकर्म करके उनकी आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। पितृपक्ष पर एक पखवाड़ा तक लोग प्रतिदिन अपने पितरों का तर्पण करते हैं। पितृपक्ष के अन्तिम दिन उन पितरों का तर्पण किया जाता है। ऐसे पितरों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती। इस अवसर पर हमें देश के उन सपूतों का तर्पण करना चाहिए, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना जीवन बलिदान कर दिया, जिनका इतिहास में भी नाम दर्ज नहीं है। ऐसे ज्ञात-अज्ञात देश के शहीदों को भी तर्पण करना हमारा नैतिक कर्त्तव्य है, और श्राद्ध करना भी हमारा धर्म है।

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