
जन्मपत्रिका में केतु की स्थिति, पूर्वजन्म की उन जिम्मेदारियों अथवा तीव्र आकांक्षाओं को इंगित करने में सक्षम है, जिन्हें वह अपने पिछले जन्म में अधूरा छोड़ आया था। केतु ‘ध्वजा' का प्रतीक होता है। ध्वजा हमारी पहचान होती है। केतु नामक ध्वजा को लेकर जातक पुनः जन्म लेता है, ताकि वह अधूरे छोड़े गए कार्यों को पूरा कर पाए, अतः जन्म के समय जातक की लग्नपत्रिका में केतु जिस भाव में स्थित होता है, उससे पूर्वजन्म का निश्चित ही गहरा सम्बन्ध होता है।
यदि जातक पिछले जन्म में अपने लिए ही कुछ कार्य करते हुए मृत्यु को प्राप्त हुआ हो, तो इस जन्म की जन्मपत्रिका के लग्न भाव में केतु स्थित होता है अर्थात् पिछले जन्म में निश्चित ही जातक स्वयं के उन्नति के लिए प्रयासरत था और उसकी वह इच्छा पूर्ण होने से पूर्व ही उसकी मृत्यु हो गई थी। ऐसी स्थिति में इस जीवन में जातक स्वयं के ऊपर अत्यधिक ध्यान देने वाला होगा। वह स्वयं को ऊँचाई पर ले जाने की कोशिश करेगा। यदि केतु जन्मपत्रिका में अच्छा होगा, तो जातक को आगे भी ले जाएगा, लेकिन यदि केतु अच्छी स्थिति में नहीं होगा, तो उसे संघर्ष भी करना पड़ सकता है।
यदि केतु की स्थिति द्वितीय भाव में हो, तो सम्भवतः जातक पिछले जन्म में अपने कुटुम्ब के प्रति कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए मृत्यु को प्राप्त हुआ था अथवा धन कमाने या धन संचय करने में प्रयासरत रहते हुए काल-कवलित हुआ था। ऐसे में जातक निश्चित ही अपने पिछले जन्म के कर्त्तव्यों अथवा इच्छाओं की पूर्ति इस जन्म में करना चाहेगा। ऐसे जातक परिवार अथवा धन के मामले में सदैव जागरूक रहते हैं। इसी प्रकार तृतीय भाव में केतु की स्थिति की विवेचना की जा सकती है। हो सकता है जातक की मृत्यु उसके छोटे भाई-बहनों के प्रति कोई कर्त्तव्य निर्वाह करते हुई हो अथवा किसी पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए हुई हो, जिसे वह पूरा तो करना चाहता था, लेकिन कर नहीं पाया हो।
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the {{IssueName}} edition of {{MagazineName}}.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In

केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग
शिवलिंग का वृत्ताकार ऊर्ध्वभाग ब्रह्माण्ड का द्योतक माना जाता है। इस मन्दिर में पशुपतिनाथ के साथ उनके परिवार (शिव परिवार) की सुन्दर एवं वृहद् प्रतिमाओं को भी स्थापित किया गया है।

मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित - गुरु एवं शुक्र के फल
प्रस्तुत लेखमाला \"कैसे करें सटीक फलादेश?\" के अन्तर्गत मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित सूर्यादि नवग्रहों के फलों का विवेचन किया जा रहा है, जिसमें अभी तक सूर्य से बुध तक के फलों का विवेचन किया जा चुका है। उसी क्रम में प्रस्तुत आलेख में गुरु एवं शुक्र के नवम भाव में राशिगत, भावगत, नक्षत्रगत, युतिजन्य व दृष्टिजन्य फलों का विवेचन कर रहे हैं।

उत्तर दिशा का महत्त्व और उसके गुण-दोष
उत्तर दिशा के ऊँचा होने या उत्तर दिशा में किसी भी प्रकार का वजन होने पर अथवा वहाँ पर पृथ्वी तत्त्व आने पर जलतत्त्व की खराबी हो जाती है।

इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
इटली का निकोलाई मनुची 1656 से 1717 में अपनी मृत्यु पर्यन्त भारत में ही रहा और मुगलों सहित विभिन्न सेनाओं में सेनानायक के रूप में रहा।

'कश्मीर' पूर्व में था 'कश्यपमीर'!
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दिल्ली में एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में कहा था कि 'कश्मीर' को 'कश्यप की भूमि' के नाम से जाना जाता है।

क्यों सफल नहीं हो पा रही है गुजरात की 'गिफ्ट सिटी' एक वास्तु विश्लेषण
गिफ्ट सिटी की प्लानिंग इस प्रकार की गई है कि साबरमती नदी इसकी पश्चिम दिशा में है। यदि इसके विपरीत गिफ्ट सिटी की प्लानिंग साबरमती नदी के दूसरी ओर की गई होती, तो गिफ्ट सिटी की पूर्व दिशा में आ जाती।

त्रिक भाव रहस्य - षष्ठ भाव और अभिवृद्धि
षष्ठ भाव एक ओर तो हमें विभिन्न प्रकार के रोगों और शत्रुओं से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर ऋण अर्थात् कर्ज के लेन-देन के विषय में ताकतवर बनाता है।

लोककल्याणकारी देवता शिव
देवाधिदेव शिव लोककल्याणकारी देवता हैं। शिव अनादि एवं अनन्त हैं। शिव शक्ति का ही आदिरूप त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश में शिव को जहाँ संहार देवता माना है, वहाँ उनका आशुतोष रूप है अर्थात् शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव।

प्रयागराज महाकुम्भ का शुभारम्भ - रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालुओं ने किया संगम स्नान
प्रयागराज महाकुम्भ, 2025 ने 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) को अपने शुभारम्भ से ही एक नए इतिहास की रचना की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। यह महाकुम्भ अपने प्रत्येक आयोजन में नया इतिहास रचता है।

रात्रि जागरण एवं चार प्रहर पूजा - 26 फरवरी, 2025 (बुधवार)
नकेवल शैव धर्मावलम्बियों के लिए, वरन् समस्त सनातनधर्मियों के लिए 'महाशिवरात्रि' एक बड़ा पर्व है। इस पर्व के तीन स्तम्भ हैं: 1. उपवास, 2. रात्रि जागरण, 3. भगवान् शिव का पूजन एवं अभिषेक।