![गाणपत्य सम्प्रदाय एक विहंगम दृष्टि! गाणपत्य सम्प्रदाय एक विहंगम दृष्टि!](https://cdn.magzter.com/1382621400/1724914948/articles/ET3yhiPr91725019836271/1725020632217.jpg)
गाणपत्य सम्प्रदाय में गणपति की ही परब्रह्म के रूप में उपासना की जाती है। इस सम्प्रदाय का उद्भव छठी शताब्दी ईस्वी में माना जाता है। आर.जी. भण्डारकर याज्ञवल्क्य स्मृति, एलोरा गुफाओं में गणपति की प्रतिमा, भवभूति की मालतीमाधव, घटियाला शिलालेख (862 ई.) आदि के आधार पर मानते हैं कि यह सम्प्रदाय पाँचवीं शताब्दी के अन्त से आठवीं शताब्दी के अन्त तक प्रचलन में आ गया था। यह अवधि इस सम्प्रदाय के विकास की आरम्भिक अवधि थी। उसके बाद नवीं से ग्यारहवीं शताब्दी तक यह सम्प्रदाय पर्याप्त रूप से प्रचलित था और चौदहवीं शताब्दी से इसकी अवनति देखी जाती है।
महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ
गाणपत्य सम्प्रदाय का दार्शनिक पक्ष 'गणपत्युपनिषद्' (गणपत्यथर्वशीर्ष) आदि ग्रन्थों में मिलता है। इसके अतिरिक्त 'मुद्गल पुराण', 'गणेश पुराण' आदि भी इस सम्प्रदाय से सम्बन्धित
हैं। वैष्णव पाञ्चरात्र संहिता सूची में भी 'गणेश संहिता' का नाम मिलता है। इसके अतिरिक्त 'हेरम्ब उपनिषद्', 'गणेशपूर्वतापिन्युपनिषद्', 'गणेशोत्तरतापिन्युपनिषद्' का भी उल्लेख मिलता है। 'गणेश भागवत' की भी गणेश साहित्य में चर्चा की जाती है, परन्तु यह अब उपलब्ध नहीं है। विद्वानों के द्वारा इसकी श्लोक संख्या 21 हजार मानी जाती है। यद्यपि अग्निपुराण, गरुडपुराण आदि में भी गणेश जी की पूजा के निर्देश प्राप्त होते हैं, परन्तु डॉ. राजबलि पाण्डेय की मान्यता है कि वे इस सम्प्रदाय से सम्बन्धित नहीं होकर भागवतों या स्मातों की पंचायतन पूजा से सम्बन्धित हैं। इसी प्रकार 'तंत्रसार', 'शारदातिलक', 'मंत्रमहार्णव', 'मंत्रमहोदधि' आदि तन्त्र-ग्रन्थों में भी गणपति उपासना की पद्धति, मन्त्र, यन्त्र, कवच, स्तोत्र आदि मिलते हैं। हालाँकि ये तन्त्र-ग्रन्थ गाणपत्य सम्प्रदाय के ग्रन्थ नहीं हैं, परन्तु तंत्र के निबन्ध ग्रन्थ के रूप में इस सम्प्रदाय की प्रमुख पूजा पद्धतियों, मंत्र आदि का संकलन इनमें मिलता है।
प्रमुख सिद्धान्त और मान्यताएँ
इस सम्प्रदाय में गणपति परब्रह्म तथा ब्रह्मा आदि देवता उनके अंश मात्र हैं। इस अंश और अंशि में स्वरूपतः पार्थक्य नहीं है। यह श्रुतिसम्मत है।
आनन्दात्मा गणेशोऽयं तदंशाः पद्मजादयः ।
अंशांशिनोरभेदस्तु वेदे सम्यक् प्रकीर्तितः ॥
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केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग
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मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित - गुरु एवं शुक्र के फल
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लोककल्याणकारी देवता शिव
देवाधिदेव शिव लोककल्याणकारी देवता हैं। शिव अनादि एवं अनन्त हैं। शिव शक्ति का ही आदिरूप त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश में शिव को जहाँ संहार देवता माना है, वहाँ उनका आशुतोष रूप है अर्थात् शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव।
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प्रयागराज महाकुम्भ का शुभारम्भ - रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालुओं ने किया संगम स्नान
प्रयागराज महाकुम्भ, 2025 ने 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) को अपने शुभारम्भ से ही एक नए इतिहास की रचना की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। यह महाकुम्भ अपने प्रत्येक आयोजन में नया इतिहास रचता है।
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रात्रि जागरण एवं चार प्रहर पूजा - 26 फरवरी, 2025 (बुधवार)
नकेवल शैव धर्मावलम्बियों के लिए, वरन् समस्त सनातनधर्मियों के लिए 'महाशिवरात्रि' एक बड़ा पर्व है। इस पर्व के तीन स्तम्भ हैं: 1. उपवास, 2. रात्रि जागरण, 3. भगवान् शिव का पूजन एवं अभिषेक।