सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य
Kendra Bharati - केन्द्र भारती|March 2023
भारत का गौरव
डॉ. लखेश
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य

हमारे महान राजा पोरस से हारकर सिकंदर अपने देश लौट गया था। विश्व विजेता का संकल्प लेकर भारत की ओर बढ़े सिकंदर के लिए यह बहुत ही दुःख का विषय या कि वह भारत के एक छोटे से शासक से हार गया। भारत के इस महान शासक ने सिकंदर के विश्य विजेता बनने के संकल्प को चकनाचूर कर दिया। अपनी इस पराजय से सिकंदर को बहुत आत्मग्लानि अनुभव हुई थी।

इतिहासकारों का मानना है कि जब सिकंदर ने इस संसार से विदा ली तो उसने अपने पीछे एक विशाल साम्राज्य छोड़ा था। यद्यपि बह स्वयं अपने इस साम्राज्य से निराश था, क्योंकि वह अपनी इच्छा के अनुकूल विशाल साम्राज्य स्थापित नहीं कर पाया था। सिकंदर के इस साम्राज्य में उस समय मेसीडोनिया, सीरिया, बैक्ट्रिया, पार्थिया, अफगानिस्तान एवं उत्तर-पश्चिमी भारत के कुछ भाग सम्मिलित थे। इस साम्राज्य का बहुत बड़ा भाग सिकन्दर के देहान्त के पश्चात सेल्यूकस के अधीन रहा। अपने गुरु आचार्य चाणक्य की प्रेरणा से चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस से अपना वह भूभाग फिर से प्राप्त कर लिया जिसे सिकंदर अपना विजित प्रदेश कहकर सैल्यूकस को ठेकर गया था। भारत के प्रचलित इतिहास में इस घटना को या तो उल्लेखित नहीं किया गया है या फिर बहुत संक्षेप में इस पर प्रकाश डाला गया है, जबकि उस समय भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के दृष्टिकोण से चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा किया गया यह कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था। सिकंदर की तथाकथित विजय को अधिक महिमामंडित कर इतिहास में स्थान दिया गया और बढ़-चढ़कर उसका वर्णन किया गया। जबकि सत्य तो यह है कि चन्द्रगुप्त मौर्य का विजय अभियान सिकंटर के अभियान से अधिक सशक्त और प्रेरणा देनेवाला है। चन्द्रगुप्त के विजयी अभियान ने आक्रांताओं को पराजित करने के लिए भारत राष्ट्र को "संगठित" किया। जनमानस में "एक भारत विजयी भारत" का भाव जाग्रत किया।

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