एक बार दुर्योधन के यहाँ भाट-चारण यशोगान करने लगे: "दुर्योधन महाराज की जय हो! दुर्योधन बड़े दानी हैं, बड़े दयालु हैं..."
यह सुनकर दुर्योधन खुश हो गया। उनको पुरस्कार दिया, बोला: "तुम लोग यशोगान करने मेरे पास ही आया करो, मैं तुमको खूब दान दूँगा। कर्ण के पास मत जाना।"
यह बात भगवान जान गये और स्वयं ब्राह्मण का रूप लेकर उसके पास गये, बोले: "दुर्योधन! तुम बड़े दानी हो। मैं बूढ़ा ब्राह्मण दान लेने आया हूँ।"
दुर्योधन: "ब्राह्मण! क्या चाहिए?"
"मुझे धन, सुवर्ण या हाथी-घोड़े नहीं चाहिए। मुझे अपने पितरों का श्राद्ध करने गयाजी जाना है। बूढ़ा हूँ, चल नहीं सकता। थोड़े दिन के लिए मेरा बुढ़ापा तुम ले लो और अपनी जवानी मुझे दे दो। मैं पिंडदान करके आऊँगा तो तुम्हारी जवानी तुम्हें वापस दे दूँगा।"
उस जमाने में संकल्प से बुढ़ापा दिया जाता था, जवानी ली जाती थी और वापस भी करते थे। अब भी किन्हींका तीव्र संकल्प है तो एक-दूसरे को रोगमुक्त कर देते हैं और क्या-क्या हो जाता है!
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रूहानी सौदागर संत-फकीर
१५ नवम्बर को गुरु नानकजी की जयंती है। इस अवसर पर पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से हम जानेंगे कि नानकजी जैसे सच्चे सौदागर (ब्रहाज्ञानी महापुरुष) समाज से क्या लेकर समाज को क्या देना चाहते हैं:
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समर्थ साँईं लीलाशाहजी की अद्भुत लीला
साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के महानिर्वाण दिवस पर विशेष
धर्मांतरणग्रस्त क्षेत्रों में की गयी स्वधर्म के प्रति जागृति
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।