40 वर्षीय पवन का पूरा परिवार, पत्नी अनीता, 10 साल का बेटा अनुज और 8 साल की बेटी मेधा सुबह से ही अच्छे मूड में थे. खुश होने का पहला कारण था, आज संडे था. औफिस, स्कूल की छुट्टी थी. अनीता इस बात पर खुश थी कि आज दिनभर शौर्टकट मार कर हलका ही खाना बनाना होगा क्योंकि शाम को एक शादी में जाना था.
पवन ने उठते ही कह दिया, "आज तो भाई अब शाम को ही खाने पर टूटना है, बच्चे दिन में कम खाएंगे ताकि रात का माल उड़ा सकें."
नाश्ते में चारों ने 1-1 कप दूध में ओट्स डाल कर खा लिए. लंच में खिचड़ी खाई गई. शाम को रोज की तरह न बच्चों को कोई फल दिया गया, न खुद खाया गया, कहीं पेट न भर जाए. शादी में जाएं और पेट में जगह न हो तो सारा मजा ही खराब हो जाएगा. फिर क्या फायदा शादी में जाने का? बच्चों ने खेल कर आने पर कुछ खाने के लिए मांगा तो उन्हें समझाया गया कि घर में ही खा लोगे तो वहां जा कर क्या खाओगे? वहां बहुत सारी चीजें होंगी, सब खानी हैं.
कुछ खाया कुछ छोड़ दिया
पवन की सोसाइटी के ही एक अतिसमृद्ध परिचित के बेटे की रिसैप्शन थी, वे लोग शादी कहीं और डेस्टिनेशन वैडिंग कर के आए थे. अब यहां के परिचितों के लिए एक शानदार ओपन स्पेस वाले होटल में बड़ी सी पार्टी रखी थी. जब रात 8 बजे पवन परिवार के साथ वहां पहुंचा, उसे काफी परिचित भी मिले. मेजबानों से मिल कर, स्टेज पर दूल्हादुलहन को शगुन का लिफाफा दे कर.
शालीनता के साथ आशीर्वाद देते हुए फोटो खिंचवा कर अब पवन अपने असली रूप में आया. अब परिवार के साथ खाने के स्टाल्स पर नजर डाली, चारों का मन खुश हो गया. जहां तक नजर डाली, खाना ही खाना था.
"कहां से शुरू करें, बच्चो. अनीता तुम एक टेबल घेरो जिस से बैठ कर आराम से खाना दबा कर खा सकें. एक तरफ से सबकुछ खाना है. मैं अपनी प्लेट लगा कर लाता हूं. ऐसा करो, अनुज तुम मेरे साथ आ जाओ, 2-2 कर के खाना ले आते हैं."
अनीता ने कहा, "जाओ बेटा, खूब अच्छी तरह अपनी प्लेट में खाना भर कर ले आना. सबकुछ खाना है. देख कर ही मजा आ रहा है."
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