मेरी अंग्रेज़ी की कहानी
Pratiman|July - December 2019
अंग्रेज़ी जातिगत विशेषाधिकारों को मजबूत करती है, वर्गीय गतिशीलता के नियम तय करती है और व्यक्ति को एजेंसी से लैस करती है। क्या अंग्रेजों के सामाजिक इतिहास का कोई आत्मकथात्मक आयाम उसकी इस भूमिका की ख़बर दे सकता है? प्रस्तुत निबंध में इसी जोखिम से मुठभेड़ करने की कोशिश की गयी है।
सतीश देशपाण्डे
मेरी अंग्रेज़ी की कहानी

जहाँ तक मुझे याद पड़ता है, यह सिलसिला 'सिमिलर' (सदृश्य) शब्द से शुरू हुआ था। उस वक़्त मैं सात का और मेरा छोटा भाई चार साल का था। उन दिनों हम आज के छत्तीसगढ़ (तत्कालीन मध्य प्रदेश) के एक छोटे से क़स्बे दल्ली राजहरा में रहते थे जिसे अपनी खदानों के लिए जाना जाता था। मेरे पिता वहाँ एक सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी में इंजीनियर थे।

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यह देखना एक त्रासद अनुभव है कि जिस कोविड-19 के भय से मानव इतिहास के सबसे बड़े परिवर्तनों में से एक के घटित होने की आशंका है, वह भय बेहद अनुपातहीन और अतिरेकपूर्ण है। इस बात के भी कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं कि इन प्रतिबंधों से वायरस के संक्रमण या इससे होने वाली कथित मौतों को रोका जा सकता है। बेलारूस, निकारागुआ, तुर्की, स्वीडन, नार्वे, तंजानिया, स्वीडन, जापान आदि अनेक देशों ने डब्ल्यूएचओ की प्रत्यक्ष और परोक्ष सलाहों तथा मीडिया द्वारा बार-बार लानत-मलामत किये जाने के बावजूद या तो बिल्कुल लॉकडाउन नहीं किया, या फिर बहुत हल्के प्रतिबंध रखे। इनमें से किसी देश में कहीं अधिक मौतें नहीं हुई हैं। यह सही है कि बड़ी संख्या में लोगों के कोरोना-संक्रमण की पुष्टि हो रही है, लेकिन उससे बड़ा सच यह है कि यह वायरस उन संक्रमित लोगों में से अधिकांश लोगों को 'बीमार' तक कर पाने में सक्षम नहीं है।

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