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भाइयों ने मुख मोड़ा लेकिन भगवान का चिंतन न छोड़ा
सत्यस्वरूप परमात्मा को पाने की जिज्ञासा तीव्र हो गयी तो समझो आपके भाग्य में चार चाँद लग गये।
सेवा का रहस्य
अपनी वासना मिटाने के लिए जो करते हो वह सेवा है।
तुम भी बन सकते हो अपनी २१ पीढ़ियों के उद्धारक
प्राचीन काल की बात है। नर्मदा नदी जहाँ से निकलती है वहाँ अमरकंटक क्षेत्र में सोमशर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम था सुमना । सुमना के पुत्र का नाम था सुव्रत । सुव्रत जिस गुरुकुल में पढ़ता था वहाँ के कुछ शिक्षक, आचार्य ऐसे पवित्रात्मा थे कि वे उसे ऐहिक विद्या पढ़ाने के साथ योगविद्या और भगवान की भक्ति की बातें भी सुनाते थे।
तुम्हारे जीवन की संक्रांति का भी यही लक्ष्य होना चाहिए
जब तक सर्व दुःखों की निवृत्ति एवं परमानंद की प्राप्ति का लक्ष्य नहीं है तब तक राग-द्वेष की निवृत्ति नहीं होती।
तुलसी-पूजन से होती सुख-समृद्धि व आध्यात्मिक उन्नति
अच्छी बात जो ठान लें उसको पूरा करें और बुरी बात को निकालने की ठान लें, आपकी आत्मशक्ति बढ़ जायेगी।
बल एवं पुष्टि वर्धक तिल
सत्संग का अमृत पीने से व्यक्ति संयमी और योगी बनता है।
हर संबंध से बड़ा है गुरु-शिष्य का संबंध
जो सुख के दाता हैं उनका नाम है सद्गुरु'।
चंचल मन से कैसे पायें अचल पद ?
नित्य की स्मृति अगर नित्य रहे तो परमात्मप्राप्ति सुलभ हो जाती है।
मेरे गुरुदेव की महिमा अवर्णनीय है
अपने आत्मा-परमात्मा के साथ नाता जोड़ने की सहायता जो पुरुष देते हैं, वे चिरआदरणीय होते हैं।
ध्यान की जितनी प्रगाढ़ता उतना लाभ
बार-बार ध्यान-समाधि का सुख भोगने से व्यक्ति विकारों के सुख से ऊपर उठ जाता है।
ऐसा इंटरव्यू जो न कभी देखा न सुना
अपनी योग्यता विकसित करने के लिए अपने को तत्परता से कार्य करना चाहिए।
इस पर कभी आपने सोचा है ?
जो मरने के बाद भी साथ नहीं छोड़ता, थोड़ा समय अकेले रहकर उस (परमात्मा) के विषय में विचारें।
ॐकार का महत्त्व क्या और क्यों ?
जप करते-करते रजो-तमोगुण शांत हो जाता है और सात्त्विक सुख का द्वार खुलता है।
विद्यार्थी संस्कार - जिसे दुनिया ने ठुकराया उसे संत ने अपनाया
दुनिया में ऐसा कोई हितैषी नहीं जितने हमारे सद्गुरु हितैषी होते हैं।
जीवन बदलने का सामर्थ्य
जैसे बीज में वटवृक्ष छुपा है ऐसे ही आपके अंदर ब्रह्मांडीय ऊर्जा का बीज परमात्मा' छुपा है।
ब्रह्मवेत्ता संत ने क्यों किये ३ कुटियाओं को प्रणाम ?
जो रब की मस्ती में रहते हैं उनके सुमिरन-दर्शन से हम पवित्र होते हैं।
असावधानी से की हुई भलाई बुराई का रूप ले लेती है
परिणाम में दुःख आये ऐसा काम बुद्धिमान नहीं करते ।
ईमानदारी सत्यस्वरूप ईश्वर को संतुष्ट करती है
आज विद्यालय-महाविद्यालयों में ऐसी पढ़ाई होती है कि बस रटारटी करके प्रमाणपत्र लो और फिर नौकरी के लिए भटकते रहो। विद्यार्थियों की आत्मशक्ति, आत्मचेतना जागृत ही नहीं होती।
थोड़े समय में ध्यान का ज्यादा लाभ कैसे पायें ?
'ध्यान के लिए आवश्यक है अभ्यास' गतांक से आगे
शरद ऋतु में कैसे रहें स्वस्थ ?
बाहर से सुखी होने की इच्छा ही दुःख का मूल है।
ॐकार का महत्त्व क्या और क्यों ?
ॐकार-जप से सकारात्मक ऊर्जा के साथ-साथ भगवत्प्रीति, भगवत्प्रसादजा मति उत्पन्न होती है।
अपने प्यारे साधकों के लिए पूज्य बापूजी का संदेश
मौन वे ही रह पाते हैं, गहरे भी वे ही उतर पाते हैं जिनका लक्ष्य परमात्मा होता है।
गणपति-पूजन का तात्त्विक रहस्य
अपने-आपमें (आत्मस्वरूप में) 'मैं पना होना ही मुक्ति का मार्ग है।
पाचनतंत्र ठीक करने की रहस्यमय कुंजी
शरीर में जितने अंश में वीर्य होगा उतने अंश में प्रसन्नता होगी।
स्वतंत्र शक्ति का मिथ्याभिमान त्यागो ब्रह्म की महिमा समझो
अपने दिलबर को पीठ देकर शरीर का अहं सजाओगे तो कहीं के नहीं रहोगे।
ॐकार का महत्त्व क्या और क्यों ?
ॐकार के जप से असाध्य मानसिक दुर्बलताएँ मिटती हैं।
महामारी ने इतने नहीं मारे तो किसने मारे?
विवेक-वैराग्य प्रखर होने पर निर्भयता तथा साहस स्वभाव बन जाता है।
जवानी में सुख-सुविधा का आग्रही होगा तो जल्दी बूढा बनेगा और जरा-जरा बात में बीमार हो जायेगा।
जवानी निकल गयी तो गये...
रक्षाबंधन का यदि यह उद्देश्य हो तो...
आध्यात्मिक लाभ ही वास्तविक लाभ है, लौकिक लाभ तो धोखा है।
विद्यार्थी संस्कार
अपने प्रति न्याय और दूसरों के प्रति उदारता यह सिद्धांत निर्दोषता की सुरक्षा करता है।