कालेकाले बादलों ने आसमान में डेरा डाल दिया. मुक्ता तेजी से लौन की तरफ दौड़ी सूखे हुए कपड़ों को हटाने के लिए बूंदों ने झमाझम बरसना ने शुरू कर दिया.
कपड़े उतारतेउतारते मुक्ता काफी भीग चुकी थी. अंदर आते ही उस ने छींकना शुरू कर दिया.
मां बड़बड़ाते हुए बोलीं, “मुक्ता, मैं ने तुझ से कितनी बार कहा है कि भीगा मत कर, लेकिन तू मानती ही नहीं."
मुक्ता ने शांत भाव से कहा, "मां, आप सो रही थीं, इसलिए मैं खुद ही चली गई. मां, अगर आप जातीं, तो आप भी तो भीग जातीं न."
मां दुलारते हुए बोलीं, “मेरी बेटी को इतना प्यार करती है..."
“हुं..." मुक्ता ने सिर हिलाते हुए कहा और मां के कांधे से लिपट गई.
“तू पूरी तरह से भीग गई है. जा कर तौलिए से बाल सुखा ले और कपड़े बदल ले. मैं तेरे लिए अदरक वाली चाय बना कर लाती हूं," कहते हुए मां चाय बनाने चली गईं.
मुक्ता खिड़की से बारिश की बूंदों को गिरते हुए देखने लगी. देखतेदेखते वह पुरानी यादों में खो गई.
औफिस जाने के लिए मुक्ता बस स्टौप पर बस का इंतजार कर रही थी। कि तभी एक नौजवान उस के बगल में आ कर खड़ा हो गया. अच्छी कदकाठी का महत्त्व ऑफिस के लिए लेट हो रहा था. आज उस की बाइक खराब हो गई थी.
महत्त्व रहरह कर कभी अपने हाथ की घड़ी को, तो कभी बस को देख रहा था. तभी एक बस आ कर खड़ी हुई. सब लोग बस में जल्दीजल्दी चढ़ने लगे.
この記事は Saras Salil - Hindi の December First 2022 版に掲載されています。
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