सु"ख दिन है, दुख है रात घनी काली, है दर्द दीया में बाती का जलना... गोपाल सिंह नेपाली की इस एक पंक्ति में सुख-दुख-दर्द, तीनों को एक साथ समझा जा सकता है। बुद्ध ने कहा था - यह संसार दुख-दर्द से भरा हुआ है और यह दुख हमारे अस्तित्व से जुड़ा है, हमारी इच्छाओं, हमारे मोह-प्रेम और अपेक्षाओं से जन्मा है।
दुख के पांच चरण
मशहूर स्विस अमेरिकन मनोचिकित्सक एलिजाबेथ कुबलर रॉस ने मृत्यु और उससे जुड़े दुख को ले कर कई अध्ययन किए। अपनी बेस्ट सेलिंग किताब ऑन डेथ एंड डाइंग में उन्होंने दुख के 5 चरणों के बारे में लिखा है। इन चरणों को कुबलर रॉस मॉडल कहा जाता है। ये चरण हैं— अस्वीकृति, क्रोध, बार्गेनिंग, डिप्रेशन और स्वीकृति । जब हम किसी तल्ख सचाई का सामना कर रहे होते हैं, तो ऐसे ही 5 चरणों से हो कर गुजरते हैं। हालांकि हर इंसान के लिए दुखी होने की प्रक्रिया थोड़ी अलग हो सकती है। जब दुख के साथ स्ट्रेस और ट्रॉमा भी जुड़ा होता है, तो स्थिति गंभीर हो जाती है, जिससे मेंटल-फिजिकल हेल्थ प्रभावित होती है। दबाव का असर शरीर और मन दोनों पर पड़ता है, जिससे कार्टिसोल और एड्रेनलाइन जैसे स्ट्रेस हारमोन्स रिलीज होते हैं और भूख और नींद का चक्र बिगाड़ देते हैं। लंबे समय तक ऐसा चलता रहे तो व्यक्ति की रोजमर्रा की जिंदगी पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उसके कामकाज से ले कर निजी जीवन तक सब कुछ अस्तव्यस्त हो सकता है। दुख की स्थिति में व्यक्ति कई तरह के मनोभावों से हो कर गुजरता है, लेकिन जब इसमें ट्रॉमा भी जुड़ जाता है, तो उसकी स्थिति बिगड़ने लगती है।
क्या होता है इन स्थितियों में
कुबलर रॉस मॉडल के अनुसार दुख के इन सभी 5 चरणों में अलग-अलग लक्षण दिखायी देते हैं। हर स्टेज पर इन लक्षणों के आधार पर व्यक्ति का व्यवहार भी अलगअलग होता है।
स्टेज 1. अस्वीकार्यता : इस स्तर पर बाहरी तौर पर व्यक्ति भूलने, ध्यान भटकने, अजीबोगरीब बर्ताव करने, हमेशा व्यस्त दिखते रहने या जबरन खुद को ठीक दर्शाने की कोशिश करता है। कई बार वह शॉक में होता है, उसे अपने आसपास शून्य सा नजर आता है, भ्रमित रहता है या हर तरफ से खुद को घिरा हुआ पाता है। वह किसी भी निर्णय तक पहुंचने में खुद को समर्थ नहीं पाता।
この記事は Vanitha Hindi の April 2023 版に掲載されています。
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