हालांकि कृषि विभाग की ओर से किसानों को फसल अवशेष जलाने से रोकने के लिए काफी प्रयास किए जा रहे हैं. इस के बाद भी फसल अवशेषों को जलाने की घटनाएं नहीं रुक पा रही हैं. फसल अवशेष जलाने से खेत की मिट्टी के साथसाथ वातावरण पर भी बुरा असर पड़ता हैं.
जैसे मिट्टी के तापमान में वृद्धि, मिट्टी की सतह का सख्त होना, मुख्य पोषक तत्त्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की उपलब्धता में कमी व अत्यधिक मात्रा में वायु प्रदूषण आदि जैसे नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं, इसलिए किसानों को फसल अवशेष जलाने से बचना चाहिए और इन का उपयोग मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ाने के लिए करना चाहिए. यदि इन अवशेषों को सही ढंग से खेती में उपयोग करें, तो इस के द्वारा हम पोषक तत्त्वों के एक बहुत बड़े अंश की पूर्ति इन अवशेषों के माध्यम से कर सकते हैं.
विभिन्न फसलों की कटाई के बाद बचे हुए डंठल और गहराई के बाद बचे हुए पुआल, भूसा, तना और जमीन पर पड़ी हुई पत्तियों आदि को फसल अवशेष कहा जाता है.
विगत एक दशक से खेती में मशीनों का प्रयोग बहुत बढ़ा है. साथ ही, खेतिहर मजदूरों की कमी की वजह से भी यह एक जरूरत बन गई है. ऐसे में कटाई व गहराई के लिए कंबाइन हार्वेस्टर का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा है, जिस की वजह से भारी मात्रा में फसल अवशेष खेत में ही पड़ा रह जाता है, जिस का समुचित प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है.
हमारे देश में सालाना 650-685 मिलियन टन फसल अवशेष पैदा होता है. कुल फसल अवशेष उत्पादन का 58 फीसदी, धान्य फसलों से 17 फीसदी गन्ना, 20 फीसदी रेशा वाली फसलों से और 5 फीसदी तिलहनी फसलों से प्राप्त होता है.
सब से अधिक फसल अवशेष जलाने की रिपोर्ट पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से है, पर आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पूर्वी उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में फसल अवशेष जलाने की प्रथा चल पड़ी है और बदस्तूर जारी है.
फसल अवशेष प्रबंधन की विधियों की जानकारी न होने व होते हुए भी किसान अनजान बने हैं. आज कृषि के विकसित राज्यों में महज 10 फीसदी किसान ही फसल अवशेषों का प्रबंधन कर पा रहे हैं.
फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान
• अवशेष जलाने से 100 फीसदी नाइट्रोजन, 25 फीसदी फासफोरस, 20 फीसदी पोटाश और तकरीबन 60 फीसदी सल्फर का नुकसान होता है.
この記事は Farm and Food の October Second 2022 版に掲載されています。
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.