बढ़ती जनसंख्या व मौसम की मार से सब्जियों की उपलब्धता व मूल्य पर अकसर प्रभाव देखा जाता है, जिस से छोटे और मध्यम किसान कम भूमि उपलब्धता व तकनीकी जानकारी के अभाव में परिवार का पोषण बाजार की क्रय सब्जियों से करते हैं. किसानों की आय में वृद्धि उन्नत विधियों द्वारा प्रति इकाई क्षेत्र से अधिक उत्पादन एवं लाभ बढ़ा कर प्राप्त की जा सकती है.
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के प्रसार केंद्रों के द्वारा विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से इस समस्या के समाधान के लिए संबंधित सूचना का प्रसार, उन्नतशील किस्मों के बीज का वितरण एवं विक्रय किया जा रहा है, जिस के माध्यम से शहरी, ग्रामीण व माली रूप से कमजोर किसान अपने घर के पास की भूमि या परती भूमि में सब्जी की खेती कर के अपने परिवार को स्वास्थवर्धक व पौष्टिक सब्जियों की उपलब्धता पूरी कर सकते हैं.
सब्जी की बेहतर पैदावार व गुणवत्ता वाली प्रजातियों का प्रसारण जनपद स्तर पर कृषि विज्ञान केंद्र, भदोही की ओर से काफी गंभीरतापूर्वक निरंतर प्रयास किए जाते रहे हैं. केंद्र के माध्यम से किसानों को वैज्ञानिकी प्रशिक्षण दे कर उन्हें परंपरागत फसलों के बदले नकदी फसलों व व्यावसायिक फसलों की ओर आकर्षित कर उन की आय में वृद्धि भी की गई.
भदोही जनपद के किसानों को प्राकृतिक व जैविक उत्पाद उगाने पर जोर दिया गया. किसानों को सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियों से अवगत करा कर खेतों में ड्रिप सिंचाई पद्धति का समायोजन किया गया, जिस के माध्यम से सिंचाई को आसान और पानी की बचत व पोषक तत्त्व प्रबंधन का काम आसान हुआ. खरपतवारों का संक्रमण भी सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियों में कम देखा गया और कीटनाशक, खरपतवारनाशी का प्रयोग भी इन यंत्रों के माध्यम से करने से श्रम व पैसों की बचत होने लगी.
この記事は Farm and Food の September Second 2023 版に掲載されています。
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.