एक ही खेत में एक से ज्यादा फसलें पुरानी परंपरा है, जैसे गेहूंचना एकसाथ उगाना. मुख्य फसल की 2 पंक्तियों के बीच में जल्दी पकने और बढ़ने वाली घनी फसलें बोई जा सकती हैं. स्तंभ आकार के औषधि पौधे, जो बड़े हैं, उन के नीचे बेल वाली फसलें जैसे करेला आदि लगा सकते हैं. छाया की जरूरत वाली फसलें, जैसे अदरक, सफेद मूसली, अश्वगंधा, हलदी आदि लगा कर अधिकतम भूमि का प्रयोग कर के उत्पाद की क्वालिटी के साथ शुद्ध लाभ बढ़ाया जा सकता है.
किसी कारणवश एक फसल खराब हो भी जाए, तो उस के नुकसान की भरपाई दूसरे उपाय से हो सकती है. अतः जहां तक संभव हो, सहफसल खेती किसानों को लगानी चाहिए, जैसे आजकल किसान गन्ने के साथ सहफसल खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
शरदकालीन गन्ने के साथ सहफसल
गन्ना और आलू: 90 सैंटीमीटर की दूरी पर गन्ना (बीज दर 6 टन प्रति हेक्टेयर) और बीच में आलू की 2 पंक्तियां 30-30 सैंटीमीटर की दूरी पर बोएं.
गन्ने के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश का क्रमश: 150:60:60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और आलू के लिए 120:80:100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें.
आलू उत्पादकता 275 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और गन्ना 92 टन प्रति हेक्टेयर.
लाभ लागत अनुपात: 1.69.
गन्ना और सरसों: 90 सैंटीमीटर पर गन्ना (बीज दर 6 टन प्रति हेक्टेयर और बीच में सरसों) की 2 पंक्तियां 30:30 सैंटीमीटर की दूरी पर बोएं.
この記事は Farm and Food の January Second 2024 版に掲載されています。
7 日間の Magzter GOLD 無料トライアルを開始して、何千もの厳選されたプレミアム ストーリー、9,000 以上の雑誌や新聞にアクセスしてください。
すでに購読者です ? サインイン
この記事は Farm and Food の January Second 2024 版に掲載されています。
7 日間の Magzter GOLD 無料トライアルを開始して、何千もの厳選されたプレミアム ストーリー、9,000 以上の雑誌や新聞にアクセスしてください。
すでに購読者です? サインイン
कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.