लेकिन एक ऐसा भी फल है, जो न केवल चीनी से ज्यादा मिठास लिए होता है, बल्कि इस के इस्तेमाल से डायबिटीज रोगी को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता है. इस फल का नाम है मोंक, जो मिठास से भरपूर होता है.
मोंक फ्रूट अपनी मिठास के चलते दुनियाभर में खासा महत्त्व रखता है, क्योंकि इस फल में मोग्रोसाइड्स नामक तत्त्व पाया जाता है, जिस से निकाला गया मिश्रण सुक्रोज या गन्ने की चीनी से लगभग 300 गुना अधिक मीठा होता है.
यह फ्रूट मीठा होने के साथ ही पोषक तत्त्वों से भी भरपूर होता है. इस में एमिनो एसिड, फ्रक्टोज, विटामिन भरपूर मात्रा में शामिल होते हैं. इस फल की खास बात यह है कि इस का प्रयोग पेय पदार्थ और पके हुए भोजन में प्रयोग करने पर भी इस की मिठास बनी रहती है, वहीं इस के पल्प यानी गूदे से विशेष प्रकार का पाउडर (मोंगरो साइड) निकाला जाता है. लोग दूध, चाय और मिठाइयों में डाल कर इस का इस्तेमाल करते हैं.
मोंक फ्रूट का उपयोग
मोंक फ्रूट का उपयोग सदियों से पारंपरिक चीनी दवाओं में खांसी, गले में खराश और पेट और आंतों की छोटीमोटी परेशानियों के इलाज के लिए किया जाता रहा है. मोंक फ्रूट के अर्क में विशिष्ट जैविक गुण भी होते हैं, जिन में ट्यूमररोधी, मधुमेहरोधी, सूजनरोधी और एंटीऑक्सीडेंटिव शामिल हैं.
मोंक फ्रूट अपने तीखे और मीठे स्वाद के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. कुछ देशों में इस का बड़े पैमाने पर गैरकैलोरी प्राकृतिक स्वीटनर के रूप में उपयोग किया जाता है. इसी वजह से औद्योगिक खाद्य और पेय पदार्थों में इस का उपयोग धीरेधीरे बढ़ा है.
मोंक फ्रूट का पौधा बेल के रूप में सहारे या मचान पर बेल के रूप में फैल कर फल देता इस को एक बार रोपे जाने के बाद लगभग है. 5 सालों तक फलत ली जा सकती है. मोंक फल की बेलें पूरे साल फलत देने वाली होती हैं, जिस की पौधों की बेल के रूप में फैलने की औसत लंबाई 15 मीटर तक होती है, जबकि इस की पत्तियां दिल के आकार की और 32 सैंटीमीटर लंबी और 25 सैंटीमीटर तक चौड़ी होती हैं.
ऐसे हुई खेती की शुरुआत
कभी पूरी दुनिया में सिर्फ चीन के गुआंग इलाके में पैदा होने वाले मोंक फ्रूट की खेती अब हिमाचल प्रदेश के साथ ही उत्तराखंड के तमाम इलाकों में की जाने लगी है.
この記事は Farm and Food の May Second 2024 版に掲載されています。
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