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जोड़ता है जो जल

Aha Zindagi

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February 2025

सारे संसार के सनातनी कुंभ में एकत्रित होते हैं। जो जन्मना है वह भी, जो सनातन के सूत्रों में आस्था रखता है वह भी। दुनियादारी के जंजाल में फंसा गृहस्थ भी और कंदरा में रहने वाला संन्यासी भी।

जोड़ता है जो जल

तट की रेत सबको जोड़ती है, डुबकी लगाने वालों के बीच सारे भेद मिट जाते हैं। यही ऐक्य सनातन का मूल है जो तीर्थ से जुड़ी तमाम परंपराओं में झलकता है।

नदियां मानव संस्कृति की धमनियां हैं, इनका प्रवाह जीवन का प्रवाह है। भारत ने इस प्रवाह को पूजा, प्रशंसा की और प्रणत भी हुआ। यहां तक कि इन्हें स्पंदनशीला मानकर सूक्त भी लिखा। इमं मे गङ्गे यमुने सरस्वति शुतुद्रि सतोमं सचता परुष्ण्या । असिक्न्यामरुद्वृधे वितस्तयार्जीकीये शृगृह्या सुषोमया । । भारतीय संस्कृति कृतज्ञ संस्कृति है। जिनका आश्रय लेकर आर्य संस्कृति फली फूली, उसके वंशजों ने अपने मूल को भूला नहीं। संपूर्ण जीवन चाहे नदी किनारा मिले न मिले, किंतु समय-समय पर अपनी हाज़िरी अवश्य देता है कि मां ! तुमसे हम हैं। तीर्थ-अटन उसी परंपरा का निर्वाह है। स्थावर तीर्थ समय के प्रभाव से मलिन न हों, इसलिए जंगम तीर्थों का सान्निध्य भी आवश्यक माना गया। और इस प्रकार जो आयोजना बनी उसका नाम पड़ा - कुंभ । 'कुं पृथ्वीं उम्भयति पूरयति मंगलेन ज्ञानामृतेन वा'। अर्थात, जो समय पृथ्वी को मंगल या ज्ञान से पूर्ण कर दे, वह कुंभ है।

imageरागी और विरागी का संगम

यह सनातन का संगम है। जिस प्रकार किसी एक परिवार के सदस्य विभिन्न कारणों से दूर-दूर रहते हुए भी शुभाशुभ अवसरों पर एकत्र होते हैं, उसी प्रकार सभी सनातनी कुंभ में उपस्थित होते हैं। विशेष बात यह कि स्वयं को जागतिक प्रपंचों से मुक्त रखने वाले संन्यास को भी इस सूत्र में बांधा गया। न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं, न मंत्रो न तीर्थं न वेदों न यज्ञः.. ऐसी निष्ठा वालों को भी कर्तव्य से बांधा गया, एकांत में रहो पर कभी जन के बीच भी आओ। थोड़ा आगे रागी बढ़े और किंचित प विरागी । साधु मठ-मंदिर या हिमालय से उतरता है तो घरबारी भी कुछ दिन सबकुछ छोड़कर ज्ञानगंगा में डुबकियां लगाता है। कुंभ की महिमा में कहा गया है- अश्वमेध सहस्राणि वाजपेय शतानि च। लक्षप्रदक्षिणा भूमेः कुम्भस्नानेन तत् फलम् । । ऐसा अवसर कोई क्यों छोड़े?

हर कोई देने वाला होता है

Aha Zindagi

このストーリーは、Aha Zindagi の February 2025 版からのものです。

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