सब लोग खा लें, तब खा लूंगी...
जब सब अपने-अपने काम से निकल जाएंगे, तब मैं अपना काम करूंगी....
आज बाहर नहीं जा सकती, सबकी छुट्टी का दिन है न...
में करियर में वापस तो तब ही आ पाऊंगी न जब बच्चे बड़े हो जाएंगे...
भारतीय महिलाओं के मुंह से अकसर ऐसे वाक्य सुनने के लिए मिल जाते हैं। इनमें कभी भी वो अपने फायदे की बात करती दिखती ही नहीं हैं। बात होती है तो दूसरों की। इसका नतीजा ये होता है कि महिलाएं अपने सपनों, ख्वाहिशों, करियर और यहां तक कि अपने स्वास्थ्य में भी बहुत पीछे रह जाती हैं। इन सबके पीछे की वजह सिर्फ इतनी है कि महिलाएं खुद को प्राथमिकता देती ही नहीं हैं। उन्होंने अपनी मां, चाची, मौसी या नानी- दादी को ऐसा करते देखा ही नहीं है। उनके लिए तो दूसरे ही प्राथमिकता होते हैं। किसी काम में पहले उनके बारे में सोचने वाला कोई होता ही नहीं है। जो महिलाएं खुद को प्राथमिकता देती हैं, वो या तो खुद अपराध बोध में घुटी चली जाती हैं या समाज उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर कर देता है।
मगर ये गलत है। जीवन में कई दफा खुद को प्राथमिकता देना जरूरी होता है ताकि अपने सपने पूरे किए जा सकें और ख्वाहिशों के साथ स्वास्थ्य पर भी पूरा ध्यान दिया जा सके। आने वाले साल के लिए अगर आप भी कोई रेजॉल्यूशन रख रही हैं, तो इसमें खुद को प्राथमिकता देने को उस लिस्ट में नंबर वन पर रखें। कैसे सीखें खुद के बारे में सोचना, आइए जानें:
खुद को प्राथमिकता देने का मतलब
この記事は Anokhi の December 31, 2022 版に掲載されています。
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