अरे, महिलाएं तो होती ही हैं भावुक। बात-बात में रोने के अलावा उन्हें क्या ही आता है? महिलाएं इतनी भावुक होती है, भला बोर्ड रूम में कड़े फैसले वे कैसे ले पाएंगी? महिलाओं और उनके भावुक स्वभाव के बारे में ये कुछ आम बातें हैं, जो हम सबको गाहे-बगाहे सुनने के लिए मिल ही जाती हैं। पर, ज्यादा भावुक होना और बेहतर भावनात्मक समझ होना दो अलग-अलग बातें हैं। खास बात यह है कि हम महिलाएं इन दोनों में अव्वल हैं और दोनों के अपने-अपने फायदे व नुकसान हैं। बेहतर भावनात्मक समझ होना हमें न सिर्फ अपनी, बल्कि सामने वाली की भावनाओं की कद्र करने की समझ देता है।
क्यों है हमारी भावनात्मक समझ बेहतर
पर, पहला सवाल यह उठता है कि आखिर महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा भावुक क्यों होती हैं? किसी भी विषय पर भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया देने के लिए कई वजहें जिम्मेदार हैं और खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश पर हमारा कोई नियंत्रण भी नहीं है। विज्ञान भी इस बात को मानता है कि महिलाएं आसानी से अपनी भावनाओं को जाहिर कर पाती हैं और इसके लिए कई कारण जिम्मेदार होते हैं:
• परवरिश का असर: अधिकांश महिलाओं की परवरिश इस तरह से होती है कि उन्हें अपनी जरूरतों की तुलना में सामने वाले की जरूरतों को प्राथमिकता देना सिखाया जाता है। छुटपन से ही वो सामने वाले की देखभाल करने की भूमिका में आने लगती हैं। घरपरिवार और समाज की यह सीख उन्हें दूसरों के बारे में सोचना सिखाती है, जिससे वो ज्यादा भावुक बन जाती हैं। साथ ही परिवार और समाज महिलाओं को छुटपन से अपनी भावनाओं को जाहिर करना सिखाता है, वहीं लड़कों को बार-बार यही कहा जाता है - लड़के रोते नहीं, अपनी भावनाएं जाहिर नहीं करते। समाज की इस सीख का नतीजा यह होता है कि उम्र बढ़ने पर महिलाओं की भावनात्मक समझ बेहतर हो जाती है और साथ ही समाज यह मानने लगता है कि वे ज्यादा भावुक होती हैं।
この記事は Anokhi の November 30, 2024 版に掲載されています。
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