प्रयोग करके जाना जा सकता है 'रामकृपा नासहिं सब रोगा'
DASTAKTIMES|January 2023
औषधि रोग के लक्षणों को कुछ समय के लिए दबा देती है, स्वस्थ जीवन नहीं प्रदान कर सकती। धन भोग के साधन जुटा सकता है, वास्तविक सुख नहीं दे सकता। पुस्तकें सूचना मात्र देती हैं, उनसे ज्ञान की अनुभूति परिवारजनों के प्रति हमारा कर्त्तव्य तो है लेकिन उनसे अपनत्व और आसक्ति रखना वियोग और दुःख का कारण बनता है।
ब्रह्मऋषि पूज्य सद्गुरु श्री हृदय नारायण 'योगी जी'
प्रयोग करके जाना जा सकता है 'रामकृपा नासहिं सब रोगा'

प्रत्येक मानव के भीतर परमात्मा की अखण्ड सत्ता विद्यमान है और वही सारी शक्ति, आनन्द, ज्ञान और प्रेम का स्रोत है। भोजन से शक्ति, धन से सुख, पुस्तकों से ज्ञान और सम्बन्धियों से अपनत्व मानना ही इस सत्ता का निरादर एवं पाप है जिसका परिणाम रोग, वियोग, मलिनता और आवागमन है। श्रीमानस में दुःख को पाप का परिणाम कहा गया है। करहिं पाप पावहिं दुःख भय रुज सोक वियोग। गलत धारणा (भावना) ही पाप है। यदि सही सिद्धान्त समझकर सही प्रविधि अपनाई जाए तो इस पाप के परिणाम - भय, रुज, शोक, वियोग- सब दुःखों से छुटकारा मिलेगा।

धारणा की भ्रान्तियां

1. शरीर के स्तर पर औषधि से स्वास्थ्य प्राप्ति की आशा। 

2. इन्द्रियों के स्तर पर भोजन (पौष्टिक पदार्थों) से शक्ति प्राप्ति की आशा। 

3. मन के स्तर पर अनुकूल परिस्थिति और धन से आनन्द प्राप्ति की आशा। 

4. बुद्धि के स्तर पर पुस्तकों के अध्ययन से ज्ञान प्राप्ति की आशा।

5. अहं के स्तर पर सम्बन्धियों से अपनत्व और सहायता की आशा। 

この記事は DASTAKTIMES の January 2023 版に掲載されています。

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