देवभूमि उत्तराखंड का श्रीराम से गहरा नाता
DASTAKTIMES|February 2024
मुख्यमंत्री धामी के निर्देश पर शासन ने कुमाऊं क्षेत्र में स्थित पवलगढ़ कंजर्वेशन रिजर्व का नाम बदलकर सीतावनी कंजर्वेशन रिजर्व करने की अधिसूचना जारी कर दी है। यह क्षेत्र महर्षि वाल्मीकि, माता सीता और लव-कुश से जुड़ा माना जाता है। वहां स्थित मंदिर की देखरेख का जिम्मा पुरातत्व विभाग के पास है। धामी सरकार ऐसी पहली सरकार है, जिसने किसी संरक्षित क्षेत्र का नामकरण माता सीता के नाम पर किया है।
देवभूमि उत्तराखंड का श्रीराम से गहरा नाता

22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद देवभूमि उत्तराखंड में भी राम से जुड़े मंदिरों को लेकर चर्चाएं तेज हो गई। इन मंदिरों का अस्तित्व भी हजारों साल से है। ये मंदिर प्रभु श्रीराम की ऐसी विशेष स्मृतियां सहेजे हैं जिससे यहां के दर्शन करना परम सौभाग्य की अनुभूति करने जैसा है। आज यह स्थान अपने पौराणिक व दिव्यता के कारण देश ही नहीं, दुनिया के सामने आ गए हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की रामभक्ति भी किसी से छिपी नहीं है, सीएम धामी भी श्रीराम की स्मृतियों को सहेजकर रखने हेतु संकल्पित हैं। सबसे पहले हम बात करते हैं उत्तराखंड के चमोली जनपद की, जहां कर्णप्रयाग के समीप रामनाली मंदिर है। रामनाली मंदिर को लेकर मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम वनवास के दौरान दक्षिण प्रवास एवं सीताहरण से पूर्व सीता और लक्ष्मण के साथ पहाड़ों के भ्रमण पर (वर्तमान में उत्तराखंड) थे, तो इस स्थान पर सीता माता को प्यास लगी, लेकिन आसपास कोई जलस्रोत नहीं था। जब सीता माता प्यास से व्याकुल हो रही थीं तब रामचंद्र जी ने यहां स्थित सूखे नाले की ओर बाण चलाया, जिससे जलधारा फूट पड़ी और सीता माता ने अपनी प्यास बुझाई। तब से इस स्थान को रामनाली के नाम से जाना जाता है। वहीं पानी के छोटे से कुंड को सीता कुंड के नाम से जानते हैं। यहां से महज 500 मीटर दूर दिवाली गदेरे के मिलने के बाद रामनाली को रामगंगा नाम से जाना जाता है। विकासखंड गैरसैंण के मेहलचौरी माईथान क्षेत्र से 20 किलोमीटर का सफर तय कर रामगंगा अल्मोड़ा जनपद के चौखुटिया में प्रवेश करती है। यहां से नैनीताल जनपद के रामनगर शहर के नजदीक से गुजरते हुए रामगंगा नदी पत्थर और मिट्टी से निर्मित सबसे बड़े कालागढ़ डैम में जल संचय का काम करती है। इसके बाद उत्तर प्रदेश के गढ़गंगा नामक स्थान पर गंगा नदी में मिल जाती है। रामनाली मंदिर में स्थानीय लोगों ने श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान जी की प्राचीन मूर्तियां स्थापित की हैं। यहां रामनवमी, हनुमान जयंती, नवरात्र सहित तमाम धार्मिक अवसरों पर पूजा अनुष्ठान व भंडारे किए जाते हैं। मंदिर के स्थानीय पुजारी अवतार सिंह बिष्ट व बाबा सुदामा दास कहते हैं कि सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के क्रम में मंदिर को जाने वाले रास्ते व अन्य सुविधाएं विकसित करे तो श्रदालुओं की आमद यहां बढ़ सकती है।

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आज के युग में मोबाइल या लैपटॉप आम आदमी के जीवन में काफी प्रसांगिक ये हैं। लेकिन डिजिटल विकास तमाम खूबियां के साथ कुछ खामियां भी लाया है। सात समुंदर पार बैठा शख्स भी किसी से नजदीकियां बढ़ा सकता है, लेकिन इस शख्स की सोच के बारे में कोई डिवाइस नहीं बता सकती है कि वह किस श्रेणी का इंसान है। यहीं से साइबर क्राइम की शुरुआत होती है।

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शीतकाल के छह महीने भगवान बदरी विशाल की पूजा चमोली जिले में स्थित योग-ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर व नृसिंह मंदिर जोशीमठ, बाबा केदार की पूजा रुद्रप्रयाग जिले में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ और मां गंगा व देवी यमुना की पूजा क्रमशः उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगा मंदिर मुखवा (मुखीमट) और यमुना मंदिर खरसाली (खुशीमठ) में होती है।

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कैसे अमेरिकी जासूसों की चीफ बनी - प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस
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बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।

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पीके अपनी पार्टी की रणनीति में हुए फेल
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पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर ने जनसुराज पार्टी बनाने के करीब 40 दिन बाद अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाया। प्रत्याशियों का चयन बहुत सोच-समझ किया गया। पीके की ओर से जीत के दावे भी थे, लेकिन वह परिणाम के रूप में सामने नहीं आ सके। हालांकि, पीके इस बात से थोड़े खुश जरूर होंगे कि तीन सीटों पर जनसुराज के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे।

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