नीतीश कुमार का साथ एनडीए पर भरोसा
DASTAKTIMES|June 2024
एनडीए से भाजपा ने 17 तो जदयू ने 16 सीटों पर चुनाव लड़ा था। दोनों ही दलों को 12-12 प्रत्याशी जीते। लोजपा (रामविलास) को पांच सीटें बंटवारे में मिली थीं। चिराग पासवान के नेतृत्व उसने सभी सीटों पर जीत हासिल की। एनडीए के अन्य सहयोगी जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को एक सीट दी गई थी। गया की एकमात्र सीट पर मांझी लड़े और उन्हें जीत मिली।
नीतीश कुमार का साथ एनडीए पर भरोसा

बिहार की जनता को मुख्यमंत्री तीश कुमार का एनडीए के साथ रहना भाता है। वह उन्हें इसका फल भी देती है। लोकसभा चुनाव में सीटों पर मिली जीत तो यही बता रही है। केन्द्र की सरकार बनाने में नीतीश महत्वपूर्ण हो गए हैं। भाजपा के साथ मिलकर नीतीश का फलक भारी हो जाता है। इसका फायदा बिहार की जनता को मिलता है। विकास के कार्य से लेकर सुशासन की गारंटी होती है। जंगलराज के खौफनाक यादों से लोग दूर रहते हैं। एनडीए की जीत में नीतीश के करीब 20 प्रतिशत अति पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का वोट निर्णायक होता है। भाजपा के सवर्ण वोटों के साथ जुड़ता है तो राजद के माय (मुस्लिम-यादव) की काट बनता है। यही कारण है कि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा को बड़ा झटका लगा, लेकिन बिहार में उस तरह नहीं लगा। चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री मोदी, नीतीश कुमार सहित अन्य एनडीए के बड़े नेताओं ने राजग ने जंगलराज की याद जरूर दिलाई। साथ ही भूख और भ्रष्टाचार से मुक्त शासन के साथ किए गए विकास कार्यों को बताया। आगे का खाका भी खींचा।

इससे वे मतदाताओं को अपने से जोड़े रखने में सफल रहे। इस बार के लोकसभा चुनाव में बिहार में एनडीए अपने पिछले प्रदर्शन को नहीं दोहरा सका। उसे 40 में 30 सीटों पर ही जीत मिली, जबकि 2019 में 39 पर जीत मिली थी। इस तरह उसे नौ सीटों का नुकसान हुआ। सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को हुआ है। पिछली बार 17 पर जीत मिली थी। इस बार 12 पर ही मिली। जदयू 16 पर जीती थी । उसे भी 12 पर जीत मिली।

महागठबंधन ने पिछली बार महज किशनगंज की सीट जीती थी। इस बार उसने नौ सीटों पर जीत दर्ज की है। पूर्णिया की सीट पर पप्पू यादव ने निर्दलीय जीत हासिल की है। वह भी उस स्थिति जब तेजस्वी यादव ने अपने प्रत्याशी की जगह भाजपा प्रत्याशी को वोट देने की अपील तक की थी। लोकसभा चुनाव की घोषणा से करीब डेढ़ महीने पहले दोबारा एनडीए में वापस आए नीतीश भाजपा के लिए फायदेमंद ही रहे। अगर वे नहीं होते तो राज्य में एडीए 30 से भी कम सीटों पर सिमट जाता। इस हिसाब से देखें तो नीतीश एक बड़ा फैक्टर हैं। केन्द्र में बनने वाली सरकार में भी उनकी बड़ी भूमिका है । यही कारण है कि इंडिया गठबंधन की ओर से डोरे डालने शुरू कर दिए गए।

この記事は DASTAKTIMES の June 2024 版に掲載されています。

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