आस्था का कांवड़
DASTAKTIMES|August 2024
कांवड़ यात्रा 'शिवो भूत्वा शिवम जयेत' यानी 'शिव की पूजा शिव बन कर करो' को चरितार्थ करती है। यह समता और भाईचारे की यात्रा भी है। सावन जप, तप और व्रत का महीना है। भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए भक्त गंगा, नर्मदा, शिप्रा आदि नदियों से जल भरकर एक लंबी पैदल यात्रा कर शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग पर उसे चढ़ाते हैं। उत्तराखंड में कांवड़िया हरिद्वार, गोमुख, गंगोत्री से गंगा जल भरकर इसे अपने-अपने इलाके के शिवालयों में स्थित शिवलिंगों पर अर्पित करते हैं।
रामकुमार सिंह
आस्था का कांवड़

षाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवशयनी या हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं, वैदिक मान्यता है कि इस तिथि से चार माह के लिए विष्णुजी विश्राम करते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। कहा जाता है कि विश्राम के दौरान सृष्टि का संचालन का भार महादेव के कंधों पर आ जाता है। तभी तो इसी एकादशी के बाद जी का प्रिय महीना सावन शुरू होता है। इस पूरे महीने में शिव जी के लिए विशेष पूजा-पाठ की जाती है। इन दिनों में शिवजी के 12 ज्योतिर्लिंगों में दर्शन करने की परंपरा है। सावन के महीने भोलेनाथ के भक्त गंगा तट पर जाते हैं। वहां स्नान करने के बाद कलश में गंगा जल भरते हैं। फिर कांवड़ पर उसे बांधकर और कंधे पर लटका कर अपने-अपने इलाके के शिवालय में लाते हैं और शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। कांवड़ बांस या लकड़ी से बना डंडा होता है जिसे रंग-बिरंगे पताकों, झंडे, धागे, चमकीले फूलों से सजाया जाता है और उसके दोनों सिरों पर गंगाजल से भरा कलश लटकाया जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान सात्विक भोजन किया जाता है। इस दौरान आराम करने के लिए कांवड़ को किसी ऊंचे स्थान या पेड़ पर लटका कर रखा जाता है। साथ ही यह पूरी कांवड़ यात्रा नंगे पांव करना होता है। हिन्दू धर्म की मान्यता के मुताबिक श्रावण के महीने में कांवड़ यात्रा का बड़ा महत्व है। माना जाता है कि शिव को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। उन्हें केवल एक लोटा जल चढ़ाकर प्रसन्न किया जा सकता है। वहीं यह भी मान्यता है कि शिव बहुत जल्दी क्रोधित भी होते हैं। लिहाजा ऐसी मान्यता भी है कि इस कांवड़ यात्रा के दौरान मांस, मदिरा, तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए और न ही कांवड़ का अपमान (जमीन पर नहीं रखना चाहिए) किया जाना चाहिए। कांवड़ यात्रा 'शिवो भूत्वा शिवम जयेत' यानी 'शिव की पूजा शिव बन 'कर करो' को चरितार्थ करती है। यह समता और भाईचारे की यात्रा भी है। सावन जप, तप और व्रत का महीना है।

この記事は DASTAKTIMES の August 2024 版に掲載されています。

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कैसे अमेरिकी जासूसों की चीफ बनी - प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस
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बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।

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