आरएसएस-भाजपा
इसके तीन दिन बाद, आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी परंपरागत विजयादशमी संबोधन में उन्हीं मुद्दों को छुआ, लेकिन उन्होंने अपनी बात युवाओं को नौकरी की चाहत रखने के बजाए नौकरी देने वाला उद्यमी बनने के लिए प्रोत्साहित करने के व्यापक संदर्भ में की. होसबाले की टिप्पणियों के सुर्खियों में आने के बाद एक बार फिर ऐसी अफवाहें उड़ीं कि अर्थव्यवस्था की दिशा को लेकर संघ और केंद्र की भाजपा सरकार में मतैक्य नहीं है. इन टिप्पणियों की टाइमिंग पर भी सवाल उठे, खासकर जब जयराम रमेश जैसे कांग्रेस नेताओं ने कहा कि ये टिप्पणियां राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो' यात्रा के 'असर' से पैदा हुई हैं.
यह कोई रहस्य नहीं है कि रोजगार सृजन नरेंद्र मोदी सरकार के सामने खड़ी सबसे कठिन चुनौतियों में से एक है. वास्तव में, उनके कई कैबिनेट मंत्री कोविड के बाद अर्थव्यवस्था की 'स्थिति में सुधार' पर प्रकाश डालने की कड़ी कोशिश करते रहे हैं (नवीनतम दंभ यह है कि भारत, यूके को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है). संघ के दोनों नेताओं के चिंता जताने से जो हुआ वह यह है कि नौकरियों के संकट का मुद्दा फिर 'केंद्र' में है. हालांकि, भाजपा नेता होसबाले की बातों को यह कहते हुए अर्थहीन बताने में लगे हैं कि उनकी टिप्पणी में कोई नई बात नहीं है और यह कि "इन चुनौतियों का जिक्र खुद प्रधानमंत्री अपने भाषणों में कर चुके हैं."
यह अलग बात है कि सरकार्यवाह ने एक कदम आगे बढ़ते हुए देश में गरीबी की तुलना 'सामने खड़े दानव' से की है. रोजगार तथा स्वरोजगार के अवसर पैदा करने के लिए संघ के अनुषांगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच की ओर से स्वावलंबी भारत अभियान के अंतर्गत आयोजित वेबिनार में होसबाले ने कहा कि "यह महत्वपूर्ण है कि हम इस राक्षस को खत्म करें. लगभग 20 करोड़ लोगों का अभी भी गरीबी रेखा से नीचे होना ऐसा आंकड़ा है जिससे हमें बहुत दुख होना चाहिए. 23 करोड़ लोगों की रोजाना की कमाई 375 रुपए से भी कम है." स्वदेशी जागरण मंच और संघ से जुड़े आठ अन्य संगठन इस अभियान में भागीदारी कर रहे हैं.
この記事は India Today Hindi の October 19, 2022 版に掲載されています。
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सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"