दो बंगाली महाकवियों रवींद्रनाथ टैगोर और काजी नजरुल इस्लाम की जयंती पर पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में नाबाद्वीप स्थित राधा गोविंदा जिउ मंदिर के विशाल नट मंदिर में संगीत संध्या का आयोजन होना था. लेकिन, 24 मई को कार्यक्रम से एक घंटे पहले अचानक ही हंगामा मच गया और मंदिर प्रशासन ने आयोजकों से नजरुल इस्लाम की तस्वीर हटाने के साथ इस कार्यक्रम-रवींद्रनजरुल संध्या के शीर्षक से भी उनका नाम हटाने को कहा. बाद में पता चला कि दरअसल मंदिर प्रशासन भाजपा के 'दबाव' में आ गया था, जिसे मंदिर परिसर में मुस्लिम कवि के नाम पर उत्सव रास नहीं आया था.
नजरुल इस्लाम को निशाना बनाना भाजपा के लिए नई बात नहीं है. वैसे, बंगाल को अक्सर डराती रही धार्मिक खाई पाटने में खासी अहम भूमिका निभाने वाली इस हस्ती को खलनायक की तरह पेश करना आसान काम नहीं है, लेकिन मिली-जुली तहजीब और पारस्परिक रिश्तों में भी खोट देखना तो कोई भाजपा से सीखे. ऐसे में यह स्वाभाविक ही था, जब 1999 के लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान बंगाल के भाजपा नेता तपन सिकदर ने उन्हें 'मोध्यो- मेधर मुसलमान कोबी' (दोयम दर्जे का मुस्लिम कवि) कहकर अपमानित किया. इस मामले में मूल प्रवृत्ति अन्य भगवा प्रयोगशालाओं के समान ही है - उन जगहों और एकता की ऐसी मिसालों पर जमकर निशाना साधें जिनसे हिंदुत्व के अनुकूल माहौल न बनता हो. लेकिन इस व्यापक लक्ष्य के बीच पश्चिम बंगाल को लेकर भाजपा की राजनीति में एक स्पष्ट अंतर नजर आता है, और वह है खुद को रणनीतिक लिहाज से स्थानीय माहौल में ढालना.
この記事は India Today Hindi の June 21, 2023 版に掲載されています。
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