अच्छा सोचिए जरा, अगर कोई पहले से बता दे कि भविष्य में आपको कौन-सी बीमारी होने का अंदेशा है और आप ऐसे कदम उठाएं जिससे वह संभावित बीमारी पैदा ही न हो? फ्यूजीफिल्म और डॉ. कुट्टीज हेल्थकेयर के साझा उपक्रम नूरा में एक विशेष स्वास्थ्य जांच पैकेज इसी में मदद कर सकता है. गुरुग्राम में उसके परिसर में कदम रखने पर अगर लगे कि आप भटककर किसी आलीशान होटल में चले आए हैं, तो आपको माफ किया जा सकता है. यहां जापानी लकड़ी के पैनल से सजे बगीचों के बीच माचा चाय के कप के साथ आपका स्वागत किया जाता है. फिर आपको किमोनो पहनाया जाता है और निजी देखरेख में उन कमरों में ले जाया जाता है जो दो मंजिलों में फैले हैं. नहीं, इनके अंदर हॉट टब नहीं है. यहां आपको ब्लड प्रेशर मॉनिटर, सीटी स्कैन और ईसीजी मशीनें मिलेंगी. 'कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी, इलेक्ट्रो कार्डियोग्राम'... हर टेस्ट के लिए आपको एक खास कमरे में ले जाया जाता है. मशीनें हाइ-रिजॉल्यूशन कैमरों, सेंसर और रेडिएशन या विकिरण उत्सर्जन में 97 फीसद कमी लाने वाली टेक्नोलॉजी से लैस हैं. इसके चलते कुछ खास किस्म के कैंसर के लिए बार-बार कराए जाने वाले स्कैन में सहूलत हो जाती है.
अब यही भविष्य है. इसने चिकित्सा के समूचे नजरिए को बदल दिया है. अगर पारंपरिक अक्लमंदी इस कहावत में थी कि इलाज से बेहतर है एहतियात, तो अब एहतियात की जगह प्रीडिक्शन यानी पूर्वानुमान ने ले लिया है. गुरुग्राम के मेदांता-द मेडिसिटी के चेयरमैन डॉ. नरेश त्रेहन के शब्दों में, “पारंपरिक तौर पर हम सोचते थे कि हमें बीमारी के इलाज में निवेश करना चाहिए. फिर कुछेक दशक पहले एहसास हुआ कि हमें बीमारी से बचने के एहतियाती उपाय करने चाहिए. मगर प्रीवेंटिव हेल्थकेयर एक ढीली-ढाली, कहने की सी बात थी. लोगों को अस्पताल से दूर रहने के कदम उठाने को वह प्रेरित नहीं करती थी." वे यह भी कहते हैं कि इसलिए अब हम 'प्रीडिक्टिव हेल्थकेयर' की बात कर रहे हैं. "इसमें हम मरीज के पूरे परिवेश, उसकी जीन कुंडली और रक्त के कुछ मानदंड सरीखे पहलुओं का इस्तेमाल करते हैं. इसके जरिए यह देखते हैं कि किसी व्यक्ति में किसी गैर-संक्रामक बीमारी का ज्यादा जोखिम तो नहीं! फिर उसी की जरूरत के हिसाब से प्रीवेंटिव प्लान यानी एहतियाती उपायों की योजना बनाते हैं."
この記事は India Today Hindi の August 23, 2023 版に掲載されています。
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अब आई मगरमच्छों की बारी
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"