नवंबर में पांच राज्यों-राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम-के 16.10 करोड़ मतदाता अपनी सरकार चुनने के लिए मताधिकार का प्रयोग करेंगे. लोकसभा की 543 सीटों में से 8 3 इन्हीं पांच राज्यों में हैं और यहां के चुनाव 2024 के आम चुनाव से पहले आखिरी बड़ी लड़ाई हैं. बेशक, जरूरी नहीं कि राज्यों के चुनाव बाद में होने वाले लोकसभा के चुनाव के नतीजों पर असर डालें, या उनके बारे में पहले से कोई इशारा या इत्तिला दें. मसलन, 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत का परचम लहराया था, लेकिन 2019 में वह इन राज्यों की 65 लोकसभा सीटों में से महज तीन ही जीत सकी.
फिर भी नवंबर के चुनावी मुकाबले राजनैतिक पार्टियों और खासकर दो राष्ट्रीय पार्टियों-भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस-के चुनाव अभियान का स्वर और नैरेटिव निश्चित रूप से तय करेंगे. 2018 में भी तीन राज्यों में अपनी हार के बाद भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि सरीखी लोकलुभावन योजनाएं लॉन्च करने सहित सुधार के कई कदम उठाए थे. ये चुनावी लड़ाइयां कई सियासी सूरमाओं के राजनैतिक भविष्य का फैसला भी करेंगी. उनमें मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान के मुख्यमंत्री कांग्रेस के अशोक गहलोत, और कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों-मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कमलनाथ, राजस्थान में भाजपा की वसुंधरा राजे या छत्तीसगढ़ में रमन सिंह शामिल हैं.
この記事は India Today Hindi の October 25, 2023 版に掲載されています。
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