आगरा में मथुरा की जाने वाले हाइवे पर सिकंदरा औद्योगिक क्षेत्र में 12 एकड़ में फैली 'पूरन फुटवियर इंडस्ट्रीज' की फैक्ट्री में देश और विदेश की करीब सभी आ नामी कंपनियां अपने जूतों का निर्माण कराती हैं. फैक्ट्री के पहले तल पर पूरन डावर अपने ऑफिस में लैपटॉप की स्क्रीन पर आंखें गड़ाए देश-विदेश के फुटवियर में हो रहे बदलाव पर पैनी नजर रखते हैं. यहीं से फुटवियर निर्माण में नए प्रयोगों की नींव पड़ती है. निर्माण में डिजाइन से जुड़े ज्यादातर 'स्मार्ट' प्रयोग सिकंदरा की फैक्ट्री में काम करने वाले हस्तशिल्पियों की मेहनत से बाजार में पहुंचते हैं. दो लाख रु. से दो सौ करोड़ रु. की कंपनी बनने का 'पूरन फुटवियर इंडस्ट्रीज' का सफर अचानक पूरा नहीं हुआ है.
भारत के विभाजन की विभीषिका झेलने वाले पूरन डावर के परिवार ने संघर्ष का लंबा समय देखा है. इनके पिता चौधरी लाल चंद्र डावर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के डेरा गाजी खान इलाके में रहते थे. 1947 में देश के बंटवारे के बाद लाल चंद्र कपड़े का जमा-जमाया कारोबार छोड़कर आगरा आ गए. यहां परिवार के साथ मालपुरा गांव के शरणार्थी शिविर में रहने लगे. शिविर में रहने के दौरान ही चौधरी लाल चंद्र ने परिवार का पेट भरने के लिए सिलाई का काम शुरू किया. 1949 में लाल चंद्र को आगरा के शाहगंज इलाके में सरकार की तरफ से एक मकान आवंटित हुआ. तब लाल चंद्र ने सिलाई का काम छोड़कर दूध का व्यापार शुरू किया.
1953 में पूरन डावर का जन्म हुआ. सरकारी स्कूल में उनकी पढ़ाई हुई. दूध के व्यापार से घर का खर्च नहीं निकलता था इसलिए लाल चंद्र ने कोयला की रिटेल बिक्री का लाइसेंस भी ले लिया और शाहगंज में कोयले की दुकान खोली. झारखंड से मालगाड़ी के जरिए कोयला आगरा के बिलौचपुरा रेलवे स्टेशन आता था. पूरन मालगाड़ी की रैक से कोयले को ढोकर उसे डिपो में लाते थे और यहां से अपनी दुकान पर लाकर उसे बेचते थे.
この記事は India Today Hindi の December 13, 2023 版に掲載されています。
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