छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 7 नवंबर को हुआ. इसके ठीक चार महीने पहले यानी 7 जुलाई को केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने इस राज्य के लिए चुनाव प्रभारियों के नियुक्ति की घोषणा की. पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर को चुनाव प्रभारी और केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण एवं रसायन व उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया को सह चुनाव प्रभारी बनाया गया. इस घोषणा के अगले ही दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दोनों चुनाव प्रभारियों को अपने साथ लेकर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पहुंचे और विधानसभा चुनावों को लेकर प्रदेश भाजपा के प्रमुख नेताओं के साथ मैराथन बैठक की. वे जब छत्तीसगढ़ पहुंचे तो उनकी सबसे बड़ी चुनौती इस नैरेटिव से मुकाबला करना था कि इस प्रदेश में कांग्रेस की जीत पक्की है.
दरअसल, कांग्रेस के पास भूपेश बघेल के रूप में स्थानीय स्तर पर एक मजबूत चेहरा था, जबकि भाजपा ने किसी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार नहीं घोषित किया था. 2018 में भाजपा को प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 15 सीटें मिली थीं. सरकार बनाने के लिए 46 विधायक चाहिए थे. दिल्ली से जो नेता छत्तीसगढ़ का चुनाव संभालने गए, उन्होंने स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं पर इस चुनौती का स्पष्ट असर देखा. इन नेताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं में यह यकीन पैदा करें कि भाजपा चुनाव जीत सकती है. इसके लिए प्रदेश की राजधानी के अलावा दूसरे स्थानों पर भी कई बैठकें हुईं. इसी क्रम में कार्यकर्ताओं को 'अउर नहीं सहिबो, बदल के रहिबो' का नारा दिया गया और कहा गया कि इसे जमीनी स्तर पर लोगों के बीच लेकर जाएं. भाजपा ने अपना पूरा चुनाव अभियान इस नारे और 'मोदी की गारंटी' के आसपास गढ़ा.
この記事は India Today Hindi の December 20, 2023 版に掲載されています。
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