बात 2011 की है जब इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आइएसी) आंदोलन के दौरान अरविंद केजरीवाल देश भर में मशहूर हो गए. कथित तौर पर आरएसएस-भाजपा समर्थित इस आंदोलन ने रिश्वतखोरी के खिलाफ जनता के गुस्से को उस समय आवाज दी जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार कई तरह के घोटाले के आरोपों से जूझ रही थी. सामाजिक कार्यकर्ता अण्णा हजारे उस आंदोलन का प्रमुख चेहरा थे लेकिन अगले साल तक केजरीवाल ने राजनेताओं के खिलाफ जनता की नफरत को आम आदमी पार्टी (आप) के रूप में नए संगठन की शक्ल दे दी. उसका चुनाव चिह्न झाड़ था जो भारतीय राजनीति की सफाई के इरादे का सटीक प्रतीक था और राजधानी के निराश मतदाताओं की व्यापक आवाज था.
अगर देश में कांग्रेस के पतन के कारणों में आइएसी एक कारण था तो आप ने दिल्ली में कांग्रेस पार्टी का इस अपील के साथ सफाया कर दिया कि तब की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भ्रष्टाचार में कथित तौर पर शामिल होने के आरोप में जेल भेजा जाए. लेकिन एक दशक बाद राजनीति के उलटफेर में केजरीवाल के खुद के सफर ने अजीब मोड़ ले लिया. दो बार के दिल्ली के मुख्यमंत्री खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर गए और गिरफ्तार हो गए. उनके साथ आप के तीन बड़े नेता भी गिरफ्तार हैं जिनमें उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी शामिल हैं.
यह विडंबना यहीं खत्म नहीं हुई. 21 मार्च को जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली शराब घोटाले में कथित भूमिका के लिए केजरीवाल को धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) 2002, के तहत गिरफ्तार किया तो उनके साथ एकजुटता दिखाने के लिए उनके घर पहुंचने वाले नेताओं में दिवंगत शीला दीक्षित के पुत्र, कांग्रेस के नेता संदीप दीक्षित भी थे. असल में, समूची कांग्रेस के बड़े नेता उनके समर्थन में आए और उनकी गिरफ्तारी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की ओर से लोकतंत्र पर हमला बताया. कांग्रेस ने ही पहली बार जून 2022 में, दिल्ली पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर आप सरकार के शराब लाइसेंस के अवैध वितरण में 'करोड़ों के घोटाले' की जांच की मांग की थी.
この記事は India Today Hindi の April 10, 2024 版に掲載されています。
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