फरमान खान, 42 वर्ष मेरठ
ये कोई आम टॉयलेट नहीं, बल्कि दुर्गम क्षेत्रों में तैनात भारतीय सैनिकों के लिए खास तौर पर डिजाइन किए गए हैं. यह कारखाना 'ग्रीन एनवायरो प्राइवेट लिमिटेड' नाम की स्टार्टअप कंपनी की सरपरस्ती में संचालित है जो बीते कुछ वर्षों में सैनिकों की जरूरतों के हिसाब से मोबाइल पोर्टेबल टॉयलेट बनाने वाली देश की अग्रणी कंपनी बनकर उभरी है.
इस कंपनी के प्रमुख मोहम्मद फरमान की तरक्की का रास्ता बेहद गरीबी से होकर गुजरा है. सरधना के जसद सुल्ताननगर गांव निवासी इनके पिता इंशाल्लाह खान ड्राइवर थे जो बड़ी मुश्किल से परिवार का पेट भर पाते थे. गरीबी का असर फरमान की तालीम पर पड़ा. वर्ष 1997 से लगातार तीन साल फरमान हाइस्कूल परीक्षा में फेल हुए. फिर उन्होंने आगे की पढ़ाई से तौबा कर ली. वर्ष 2000 में उन्होंने मेरठ में एक एडवरटाइजिंग कंपनी के मालिक आत्माराम शर्मा के साथ रहकर चित्रकारी और पेंटिंग सीखी. पेंटिंग के काम से वे पिता की कमाई में अपना भी हिस्सा जोड़ने लगे. मगर 2007 के बाद फ्लेक्स प्रिंटिंग मशीन बाजार में आ गई और हाथ से पेंटिंग का काम बंद होने लगा.
सफलता का मंत्र
この記事は India Today Hindi の December 18, 2024 版に掲載されています。
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